Manuscript Number : SHISRRJ203350
भारत में वैज्ञानिक परम्पराएँ का उदभव एवं विकास
Authors(1) :-डाॅ0 मो0 इमरान काजमी भारत में कोई एकल, वैज्ञानिक परम्परा रही है यह मान लेना गलत होगा। एक पुरातन सभ्यता वाले इस देश के सहस्त्राब्दियों लम्बे इतिहास में बहुमुखी मौखिक और लिखित परम्पराएँ विकसित होती रही है और इनमें देशी तथा विदेशी दोनों तत्वों का मिलन होता रहा है। इस विविधता के फलस्वरूप न केवल भारतीय विज्ञान का उसकी सम्पूर्णता में स्वरूप निर्धारित करना कठिन हो गया है, अपितु 18वीं शताब्दी के अंतिम चरण में लेकर आरंभिक 19वीं सदी पर्यन्त पश्चिम में विकसित विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ अंत-सम्बन्धों का स्वरूप निर्धारित भी उतना ही दुष्कर है। भारत के अन्दर भी जिसे प्रायः हिन्दू परम्परा रह जाता है उसमें अनुभव जप्य, निरीक्षण आधारित विज्ञान समेत वैज्ञानिक चिन्तन और आचरण के अनेक सूत्र थे जो ब्रह्मांड-विज्ञान और फलित ज्योतिष संबंधी विश्वासों के बाएँ-दाएँ तथा प्रायः उनके साथ संगति बैठटाते हुए क्रियाशीलज रहे। वैदिककालीन भारत में जहाँ खगोलविज्ञान अधिकांश विषयों में धार्मिक अनुष्ठानों से संपृक्त था, वहीं उत्तर वैदिक काल और आरंभिक मध्ययुग में खगोल विज्ञान, त्रिकोणमिति और बीजगणित धर्म और कर्मकांड में असंपृक्त होने लगे। सूर्यसिद्धान्त वाद के समय की अत्यन्त सफल रचना है। इसमें मध्याय उपग्रहो की गति और स्थिति, ग्रहणों के स्वरूप और समय निर्धारण, सूरज और चाँद के उदय तथा अस्त और छल्लेदार गोला जैसे खगोलशास्त्रीय उपकरणों की चर्चा करते हैं, परन्तु इसमें विश्वोत्पत्ति तथा सूरज और चाँद के कुछ अशुभ पक्षो का भी उल्लेख मिलता है।
डाॅ0 मो0 इमरान काजमी वैज्ञानिक परम्परा, खगोल विज्ञान, चिकित्सीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020 Article Preview
मु0-मनहरनलाल, खानकाह चैक, पो0-लालबाग, जिला-दरभंगा, भारत।
Date of Publication : 2020-07-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 24-33
Manuscript Number : SHISRRJ203350
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203350