Manuscript Number : SHISRRJ20343
आचार्य जयदेव कृत चन्द्रालोक में वर्णित गुणस्वरूप
Authors(1) :-सोनी जायसवाल काव्यशास्त्रियों ने काव्य के एक आवश्यक तत्त्व के रूप में गुणों की चर्चा की हैं। आत्मा में शौर्यादि के समान काव्य के आत्मभूत तत्त्व रस के धर्म के रूप में गुण की सत्ता को स्वीकार किया है। गुण रस के उत्कर्षाधायक तत्त्व हैं। गुण की सत्ता रस के आधीन है। गुण स्वतन्त्र रूप से नहीं रह सकते अर्थात् गुण रस के साथ अचल स्थिति में होते हैं और रस में ही रहकर रस के उपकारक होते हैं। आचार्य जयदेव सम्मत ये गुण काव्य की काव्यता को उद्भासित करने वाले हैं। गुण के बिना काव्य की काव्यता कथमपि स्वीकार नहीं की जा सकती है।
सोनी जायसवाल काव्यशास्त्र, जयदेव, चन्द्रालोक, गुण, आत्मा, शौर्य, अलंकार। 1. आचार्य विश्वनाथ, साहित्यदर्पण- 1/2 के बाद का गद्य। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020 Article Preview
शोधच्छात्रा - संस्कृत, गया प्रसाद स्मारक राजकीय महिला स्नातकोत्तर, महाविद्यालय अम्बारी, आजमगढ़।, भारत।
2. आचार्य भरतमुनि, नाट्यशास्त्र- 17/94
3. आचार्य भरतमुनि, नाट्यशास्त्र- 17/96
4. आचार्य भामह, काव्यालड्.कार- 2/1
5. आचार्य दण्डी, काव्यादर्श- 1/41-42
6. आचार्य वामन, काव्यालड्.कारसूत्रवृत्ति- 3/1/4, 3/2/
7. ‘सम्प्रति तत्र ये मार्गाः कविप्रस्थानहेतवः।
सुकुमारो विचित्रस्य मध्यमश्चोभयात्मकः’।।
आचार्य कुन्तक, वक्रोक्तिजीवित- 1/24
8. आचार्य आनन्दवर्धन, ध्वन्यालोक- 2/6
9. आचार्य भोज, सरस्वतीकण्ठाभरण- 1/58-65
10. अग्निपुराण- 346/4
11. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/10
12. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/01
13. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/02
14. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/03
15. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/04
16. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/05
17. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/06
18. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/07
19. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/08
20. आचार्य जयदेव, चन्द्रालोक- 4/09
Date of Publication : 2020-07-30
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Page(s) : 11-15
Manuscript Number : SHISRRJ20343
Publisher : Shauryam Research Institute
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