Manuscript Number : SHISRRJ203515
वैष्णव धर्म में दशावतार: एक अनुशीलन
Authors(1) :-जितेन्द्र कुमार यादव अवतारवाद एक आधारभूत वैष्णवीय संकल्पना है, जो भगवत नारायण के नायक देवता वासुदेव कृष्ण के साथ एकीकरण से विकसित हुआ प्रतीत होता है। इस एकीकरण के फलस्वरूप ही कृष्ण नारायण के नरावतार माने जाते लगे थे। विष्णु के अवतार भागवत धर्म की मुख्य भित्ति है। पुराणों में दशावतार का उल्लेख अनेकशः हुआ है। कुछ पुराणों में उनके कार्यों का उल्लेख भी मिलता है। पारम्परिक लोकधारणा में भगवान विष्णु के चैबीस अवतारों की चर्चा है, जिसमें दशावतार भी शामिल किये जाते हैं। पांचरात्रागमों में इसकी संख्या चालीस बताई गयी है।1 भागवत पुराण की प्रथम सूची में बाइस नामों तथा दूसरी में चैबीस का जिक्र है। द्वितीय सूची में प्रथम के बीस अवतार शामिल हैं। पुराणों में भगवान विष्णु के अवतारों की संख्या चालीस तक बताई गयी है किन्तु प्रख्यात अवतारों की संख्या दस मानी गयी है जो इस प्रकार हैं- 1. मत्स्य, 2. कूर्म, 3. वराह, 4. नृसिंह, 5. वामन, 6. परशुराम, 7. श्रीराम, 8. श्रीकृष्ण, 9. बुद्ध और 10. कल्कि। यह सर्वस्वीकृत अभिधात्मक दशावतार है। यदि बलराम को अलग अवतार मान लिया जाय तो यह संख्या ग्यारह हो जाती है।
जितेन्द्र कुमार यादव Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019 Article Preview
शोध-छात्र, इतिहास अध्ययनशाला, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म॰प्र॰), भारत।
Date of Publication : 2020-07-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 95-104
Manuscript Number : SHISRRJ203515
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203515