महात्मा बुद्ध की शिक्षा: वर्तमान परिवेश में कितनी प्रासंगिक?

Authors(1) :-डाॅ. पूनम सिंह

सामान्यतया यह माना जाता है कि व्यक्ति के विचारों पर तदयुगीन सामाजिक,आर्थिक, राजनीतिक एवं धार्मिक परिवेश का व्यापक प्रभाव होता है| तथा व्यक्ति के विचार समय युगीन होते हैं, किंतु जब किसी व्यक्ति के विचार काल की सीमाओं को पार कर जाते हैं तो उसे महान पुरुष या महात्मा कहा जाता है तथा ऐसे व्यक्ति के विचार समय की सीमा को चीर कर चिर कालिक हो जाया करते हैं ऐसे ही महान व्यक्तियों में महात्मा बुद्ध की शिक्षाएं जितनी प्रासंगिक उनके समय में थी उससे कहीं ज्यादा प्रासंगिक आज प्रतीत होती हैं| जिस ‘आविद्या’ और ‘दु:ख’ से सतँप्त मानवता को बुद्ध ने अपनी शिक्षा के द्वारा समाप्त करने का बीड़ा उठाया था उसी काली छाया में आज भी मानवता कराह रही है| तब धर्म की अंधता ने मनुष्य को अंधा बनाया था तो आजधर्म के साथ-साथ अर्थ , विज्ञान, राजनीति एवं अन्य सामाजिक,राजनीतिक व्यवस्थाओं ने ऐसी विषमता पैदा कर दी है कि मनुष्य पीड़ा से कराह रहा है| कभी-कभी चारों तरफ अंधेरा नजर आता है और व्यक्ति प्रकाश की खोज में इधर-उधर भटकता रहता है|

Authors and Affiliations

डाॅ. पूनम सिंह
नेट पी-एच.डी. राजनीतिशास्त्र, भारत।

  1. नीति शास्त्र के मूल सिद्धांत- वेद प्रकाश वर्मा पृ.356|
  2. प्राचीन भारत का इतिहास एवं संस्कृति- के. सी. श्रीवास्तव पृ. 826
  3. भारतीय दर्शन- बद्रीनाथ सिंह पृ.167
  4. भारतीय दर्शन- दत्ता एवं चटर्जी पृ.146
  5. दैनिक जागरण- 5 फरवरी 2011

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019
Date of Publication : 2020-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 111-115
Manuscript Number : SHISRRJ203517
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. पूनम सिंह, "महात्मा बुद्ध की शिक्षा: वर्तमान परिवेश में कितनी प्रासंगिक?", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 4, pp.111-115, July-August.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203517

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