Manuscript Number : SHISRRJ203624
काश्मीर शैवदर्शन में अज्ञान तत्त्व
Authors(1) :-रवीन्द्र कुमार पंथ
भारतीय दार्शनिक परंपरा में अज्ञानतत्व का विश्लेषण प्रायः सभी दर्शनों में किया गया है। प्रायः ज्ञान का अभाव ही अज्ञान माना जाता है किन्तु शैव दार्शनिक अपूर्ण ज्ञान को ही अज्ञान मानते है। यह अपूर्ण ज्ञान जीव को अपने वास्तविक स्वरूप का होता है। यह भी कहा जा सकता है कि अपने चिदानन्द स्वरूप को न जानना ही अज्ञान है। अज्ञान दो प्रकार का होता है बौद्ध अज्ञान और पौरुष अज्ञान। बौद्ध अज्ञान कर्म से उत्पन्न शरीर में होता है तथा शिव स्वरूप जीव (पुरुष) में होता है। बौद्ध अज्ञान में जीव शरीर को ही सत्य तथा स्वस्वरूप समझता है किन्तु पौरुष अज्ञान में जीव अपने सर्वकर्तृत्व आदि के स्थान पर किंचित्कर्तृत्व आदि को ही अपना सामथ्र्य समझता है। शैव शास्त्र अज्ञान को त्रिविध मल रूप स्वीकार करते है। यह त्रिविध मल ही क्रम से जीव को बन्धन में डालता है, संसृति का हेतु है। यह त्रिविध मलरूप अज्ञान ही संसार के अंकुर का कारण बन जाता है। परमशिव तो पूर्ण संविद स्वरूप चिदानन्द रस से भरपूर है, किन्तु अपने स्वातन्न्न्य के कारण ही सर्वप्रथम आणव मल को धारण कर स्वरूप तथा स्वातन्न्न्य दोनों रूप से संकुचित हो जाता है। क्रम से संकुचित होने पर ज्ञानशक्ति अन्तःकरण की अवस्था प्राप्त करती है। यह मायीय मल के कारण होता है। पुनः वह कार्ममल से युक्त होकर नाना प्रकार के कर्माें को करते हुए आवागमन रूपी जन्ममरण के चक्र में बंध जाता है। इस प्रकास यही त्रिविध मल बन्धन बन जाते है। इस अज्ञान की निवृत्ति हेतु शैव दार्शनिक चार उपायों को बताते है- अनुपाय, शांभवापाय, शाक्तोपाय और आणवोपाय। इन्ही उपायों के बल से जीव का मल प्रक्षालित हो जाता है तथा जीव को अपने वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है। यही स्वरूप ज्ञान अज्ञान निवृत्ति तथा मोक्ष है। यही निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है।
रवीन्द्र कुमार पंथ
कश्मीर, शैवदर्शन,अज्ञान तŸव, भारतीय दर्शन, बौद्ध, ज्ञान। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत-विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, भारत।
Date of Publication : 2020-11-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 23-30
Manuscript Number : SHISRRJ203624
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203624