अविश्वास की शेष गंध : 'मलबे का मालिक'

Authors(1) :-डॉ. राम उदय कुमार

आदमी अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की भावना की क़द्र नहीं करता। आस -पास के लोगों के आड़े वक़्त वह अपनी कायरता कारण काम नहीं आ पाता। अपने घोसलों में घुस सुरक्षा खोजे जा रहा है और दूसरो की चीज़ों पर नज़र भी गड़ी है। स्वार्थ के इस निचाट अंधेरे में पशु की गुर्राहट का प्रतिवाद सचमुच बड़ा मानीख़ेज है।

Authors and Affiliations

डॉ. राम उदय कुमार
एसोसिएट प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, एस० डी० एस० कॉलेज, कलेर, अरवल, बिहार‚भारत।

मोहन राकेश ‚ अविश्वास ‚ शेष गंध‚ मलबे का मालिक

  1. मोहन राकेश, मलबे का मालिक, नये बादल (कहानी संग्रह), भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, प्रथम संस्करण, 1957, पृ. 45
  2. मोहन राकेश, वही, पृ. 54
  3. वही, पृ. 46
  4. मोहन राकेश, वही, पृ. 54
  5. मोहन राकेश, वही, पृ. 55
  6. वही, पृ. 57
  7. केदारनाथ सिंह, शहर में रात, प्रतिनिधि कवितायें, राजकमल पेपरबैक्स, नई दिल्ली, 2013
  8. अज्ञेय, शरणदाता

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020
Date of Publication : 2020-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 91-96
Manuscript Number : SHISRRJ203634
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. राम उदय कुमार, "अविश्वास की शेष गंध : 'मलबे का मालिक' ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 6, pp.91-96, November-December.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203634

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