Manuscript Number : SHISRRJ203635
21वीं सदी के हिंदी उपन्यासों में अभिव्यक्त किसान जीवन की त्रासदी
Authors(1) :-सुभ्रांसिस बारिक
भारत जिस तेजी से विश्व पटल में अपने विकास का चित्र बना रहा है उसी तेजी से भारत में किसान का चित्र मिटता जा रहा है। इस संकट को उपन्यासकार पंकज सुबीर ‘अकाल में उत्सव’उपन्यास में बताते हैं कि “जिस तेजी से किसान खेती छोड़ रहा है, जमीन बेच रहा है, कुछ दिनो बाद सभी मल्टीनेशनल कंपनियाँ ही खेती करेंगी। तब कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं होगा। कंपनियाँ जो चाहेगी वहीँ समर्थन मूल्य रहेगा।” यह देश के लिए एक भयावह स्थिति होगी। समय रहते इस पर विचार विमर्श करना बहुत जरुरी है। आज कोई भी युवा किसान बनना नहीं चाहता है। खेती के सिवा बह कोई भी काम करने के लिए तैयार है। क्यूंकि दुसरे काम में आत्महत्या या मृत्यु का भय तो नहीं रहेगा। आज भी देश की बहुसंख्यक आवादी किसानों की है। अगर इनका विकास नहीं हुआ तो देश कभी भी विकास नहीं कर सकता। विश्व में लगभग 200 देश है। किसी भी देश में किसान इतने परिमाण में आत्महत्या नहीं करते हैं। अगर ऐसे हीं चलता रहा तो भारत का विश्व गुरु बनने का सपना बस सपना बनकर हीं रह जाएगा।
सुभ्रांसिस बारिक
भारत‚ उपन्यास‚ किसान‚ अभिव्यक्त‚ हिन्दी‚ खेती। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020 Article Preview
प्रवक्ता, हिन्दी विभाग, खैरियर (स्वायत्त) कालेज, नौपाड़ा, ओडिसा, भारतम्।
Date of Publication : 2020-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 97-102
Manuscript Number : SHISRRJ203635
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203635