भारतीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का प्रभाव

Authors(1) :-मदालसा मणि त्रिपाठी

बाज़ार और भोगवादी संस्कृति ने वैश्वीकरण को जन्म दिया है। आज के समय में इसके प्रभाव को नकारा नहीं जा सकता । यह सभी तरह के सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक आदि पहलुओं को छूता है। वर्तमान में कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जो इससे अछूता हो। भारतीय संस्कृति पर तो खासकर इसके प्रभाव बखूबी देखने लायक हैं। प्रस्तुत शोध पत्र में मैंने वैश्वीकरण के इसी प्रभाव को भारतीय संस्कृति के संदर्भ में देखने का प्रयास किया है। इसके सभी पहलुओं का पूर्ण रूप से विश्लेषण किया है।

Authors and Affiliations

मदालसा मणि त्रिपाठी
शोधार्थी, हिंदी विभाग, राजीव गाँधी विश्वविद्यालय, दोइमुख ईटानगर, अरुणाचल प्रदेश

संस्कृति, वैश्वीकरण, भूमंडलीकरण, मूल्य, देश, विश्व, विज्ञापन।

  1. https://hi.wikipedia.org/wiki/वैश्वीकरण
  2. अमित कुमार सिंह, भूमंडलीकरण और भारत: परिदृश्य और विकल्प, सामयिक प्रकाशन, नयी दिल्ली, 2010, पृष्ठ सं. 33
  3. हिन्दी-विश्वकोश, खंड-12, पृष्ठ सं. 14
  4. हिन्दी साहित्य कोश, पृष्ठ सं. 701-702
  5. प्रो. यशपाल, उद्धृत अक्षर पर्व, मार्च 2004, नरेन का लेख
  6. एन.सी.आर.टी., वैश्वीकरण और भारतीय अर्थव्यवस्था, पृष्ठ सं. 57

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020
Date of Publication : 2020-10-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 80-84
Manuscript Number : SHISRRJ20364
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

मदालसा मणि त्रिपाठी, "भारतीय संस्कृति पर वैश्वीकरण का प्रभाव ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 5, pp.80-84, September-October.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20364

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