संस्कृत महाकाव्य परम्परा

Authors(1) :-डॉ. छगन लाल महोलिया

रचनात्मक दृष्टि से यह महाकाव्य विदग्ध महाकाव्य के लक्षणों का अनुसरण करता है इसमें वैदर्भी एवं गौडी रीतियों के प्रयोगों में दक्षता विद्यमान है। लालित्य के साथ-साथ पदों में गेयता प्रस्फुटित हुई है । अंगीरस वीर है तथा शास्त्रीय दृष्टि से सभी काव्याङ्गों का समुचित विन्यास इसमें देखने को मिलता है ।

Authors and Affiliations

डॉ. छगन लाल महोलिया
सह आचार्य – संस्कृत, श्री रतनलाल कंवर लाल पाटनी , राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय, किशनगढ़, अजमेर, भारत।

संस्कृत, महाकाव्य, साहित्य, लक्षण, काव्यधारा, स्वभाविकता ।

  1. डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, संस्कृत साहित्य का अभिनव इतिहास, पृ. 90-91
  2. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 110
  3. डॉ. केशवराव मुसलगावकर - संस्कृत महाकाव्य परम्परा, पृ. 341
  4. द्रष्टव्य प्रतिमानाटक ( भास)
  5. डॉ. प्रभाकर वाटवे, संस्कृत काव्य के पंचप्राण, पृ. 101
  6. अश्वघोष, सौन्दरनन्द, 18 / 63, 64
  7. भोलाशंकर व्यास, संस्कृत कवि दर्शन, पृ. 61
  8. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 174
  9. दृष्टव्य- कल्हण - राजतरंगिणी ।
  10. डॉ. राधावल्लभ त्रिपाठी, संस्कृत साहित्य का अभिनव इतिहास, पृ. 213
  11. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 215
  12. महाकवि भट्टि - भट्टिकाव्य, 22/35
  13. संस्कृत साहित्य की रूपरेखा (पाण्डेय एवं व्यास) पृ. 189
  14. डॉ. बलदेव उपाध्याय, संस्कृत साहित्य का इतिहास, पृ. 189
  15. महाकवि भट्टि, रावणवधम्, 22, 23
  16. कुमारदास, जानकीहरण, 20/60

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020
Date of Publication : 2020-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 155-169
Manuscript Number : SHISRRJ203643
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. छगन लाल महोलिया, "संस्कृत महाकाव्य परम्परा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 6, pp.155-169, November-December.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203643

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