Manuscript Number : SHISRRJ203643
संस्कृत महाकाव्य परम्परा
Authors(1) :-डॉ. छगन लाल महोलिया रचनात्मक दृष्टि से यह महाकाव्य विदग्ध महाकाव्य के लक्षणों का अनुसरण करता है इसमें वैदर्भी एवं गौडी रीतियों के प्रयोगों में दक्षता विद्यमान है। लालित्य के साथ-साथ पदों में गेयता प्रस्फुटित हुई है । अंगीरस वीर है तथा शास्त्रीय दृष्टि से सभी काव्याङ्गों का समुचित विन्यास इसमें देखने को मिलता है ।
डॉ. छगन लाल महोलिया संस्कृत, महाकाव्य, साहित्य, लक्षण, काव्यधारा, स्वभाविकता ।
Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 6 | November-December 2020 Article Preview
सह आचार्य – संस्कृत, श्री रतनलाल कंवर लाल पाटनी , राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय, किशनगढ़, अजमेर, भारत।
Date of Publication : 2020-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 155-169
Manuscript Number : SHISRRJ203643
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203643