Manuscript Number : SHISRRJ20367
दिल्ली सल्तनत के अधीन ललित कलाओं का विकास (13वीं-14वीं शताब्दी)
Authors(1) :-अंकुर वर्मा प्रमुख कलाओं के अलावा भी निश्चित रूप से अन्य ललित कलाओं का अस्तित्व भी अवश्य रहा होगा, किंतु दुर्भाग्यवश हमारे पास इस विषय से सम्बंधित प्रामाणिक साक्ष्यों की इस कालखंड में काफी कमी है। 13वीं-14वीं शताब्दी का समय व्यापार-वाणिज्य की दृष्टि से प्रगतिशील माना जाता है। प्रो.मोहम्मद हबीब इस काल को नगरीय क्रांति की अवधारणा से संबद्ध करते हैं। सामाजिक बंधनों और जड़ता में इस काल में निश्चित रूप से ढीलापन आया। जब भी समाज में रूढ़िवादिता और संकीर्णता के बंधन कमजोर पड़ते हैं तो कलाओं के विकास के बेहतर अवसर उत्पन्न होते हैं। व्यापार-वाणिज्य और आर्थिक प्रगति के चलते वैदेशिक संपर्कों की स्थापना भी हुई। ऐसे में बाहरी कलाओं और संस्कृतियों से भी संपर्क अवश्य स्थापित हुआ होगा, जिसका प्रभाव यहां के कलात्मक माहौल पर स्वाभाविक रूप से पड़ा होगा। साथ ही कृषि में अधिशेष के चलते शिल्प आदि के विकास के लिए भी परिस्थितियां बनी होंगी। साक्ष्यों के अभाव में यह मान लेना कि जिन सुल्तानों के समय स्थापत्य और संगीत और चित्रकला की प्रगति होती रही, उन्होंने अन्य कलाओं को प्रोत्साहन नहीं दिया होगा, तर्कसंगत नहीं प्रतीत होता है। भारत में कुटीर व्यवसायों की परंपरा संपूर्ण मध्यकाल में रही है। इनमें से कई व्यवसाय शिल्प और कलाओं से संबंधित थे (जैसे-कपड़ों की रंगाई, कढ़ाई, खिलौना निर्माण,मूर्ति निर्माण इत्यादि)। इनका विकास स्वतंत्र रूप से स्थानीय स्तर पर होता रहा। साथ ही, प्रांतीय केंद्रों और हिंदू राजाओं के यहां भी कलाओं को आश्रय मिला। ऐसे में दिल्ली सल्तनत निश्चित रूप से इनसे अछूती नहीं रही होगी।
अंकुर वर्मा दिल्ली, सल्तनत, ललित, कला, व्यापार-वाणिज्य, सामाजिक, रूढ़िवादिता, संकीर्णता। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020 Article Preview
शोध छात्र, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय इलाहाबाद‚ प्रयागराज‚ उत्तर प्रदेश‚ भारत।
Date of Publication : 2020-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 102-108
Manuscript Number : SHISRRJ20367
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20367