Manuscript Number : SHISRRJ20370
कृदन्तविमर्श- आचार्य विश्वेश्वर की दृष्टि में
Authors(2) :-भूपेन्द्र, डॉ.सत्यपाल सिंह संस्कृत व्याकरण की परम्परा में आचार्य पाणिनि की अष्टाध्यायी का विशेष योगदान है। अष्टाध्यायी के सूत्रों का समय समय पर विभिन्न आचार्यों ने व्याख्यान किया। इसी क्रम में आचार्य विश्वेश्वर का नाम आता है। इन्होंने पाणिनीय सूत्रों को नवीन दृष्टि से देखने का प्रयास किया। प्रस्तुत शोधपत्र में कृदन्त प्रकरण को विषय बनाया गया है अत: यहाँ कृदन्त प्रकरण में प्रतिपादित सूत्रों पर ही विचार किया गया है। कृदन्त प्रकरण के अनेक स्थलों पर आचार्य विश्वेश्वरसूरि, महाभाष्यकार-न्यासकार-पदमंजरीकार तथा भट्टोजि दीक्षित के मत से साम्य रखते हैं परन्तु कुछ ऐसे स्थल भी हैं जहाँ सुधानिधिकार अपने से पूर्ववर्ती वैयाकरणों से आगे बढकर नवीन दृष्टिकोण प्रदान किया हैं। इस शोधपत्र से कृदन्त के विषय में आचार्य विश्वेश्वर की सूक्ष्म दृष्टि का बोध तो होता ही है साथ ही कृदन्त प्रकरण को समझने में यह अत्यन्त उपयोगी भी है।
भूपेन्द्र संस्कृत, व्याकरण, कृदन्त, विश्वेश्वर, पाणिनि, अष्टाध्यायी Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020 Article Preview
शोधछात्र, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय,दिल्ली, भारत।
डॉ.सत्यपाल सिंह
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली, भारत।
Date of Publication : 2020-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 122-126
Manuscript Number : SHISRRJ20370
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20370