Manuscript Number : SHISRRJ20371
छायावाद
Authors(1) :-डाॅ0 राजेश कुमार मिश्र कठोर नियंत्रण व बंधनों की प्रतिक्रिया स्वरूप ही स्वच्छन्दता का जन्म होता है। द्विवेदी युग में स्वच्छंद मन की प्रेममयी कतिवताएं छपती नहीं थीं। 1916 में लिखी निराला की जूही की कली को इसी के चलते किनारे कर दिया गया था। एक ओर भाषा और शैलीगत बंधन दूसरी ओर विषयगत बन्धन के चलते स्वच्छन्द प्रवृत्ति का जन्म हुआ। 1918 के बाद की सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक परिस्थितियाँ भी इस स्वच्छन्दता को प्रोत्साहित कर रहीं थीं। बढ़ती शिक्षा व्यवस्था तथा अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन भी वैचारिक स्वतंत्रता की ओर अग्रसर होने में सहायक हुआ। एक ओर शेली, कीट्स, वायरन की स्वच्छंद और मुक्त हृदय की कविता थी दूसरी ओर द्विवेदी कालीन मर्यादाशील कविता। युवा वर्ग का आकर्षण स्वच्छन्द विचारधारा की ओर उन्मुख हुआ जिसका प्रमाण बंगाल रविन्द्र नाथ टैगोर की कविता की धूम मच जाना। रविन्द्र की कविता मुक्त और स्वच्छंद मन की, मानवतावादी तथा आध्यत्मिकता की पुट लेकर आई।
डाॅ0 राजेश कुमार मिश्र छायावाद, सामाजिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, द्विवेदी युग Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020 Article Preview
सहायक आचार्य, (हिंदी विभाग), मर्यादा देवी कन्या पीजी कालेज, बिरगापुर, हनुमानगंज, प्रयागराज, उत्त प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2020-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 127-131
Manuscript Number : SHISRRJ20371
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20371