काव्यप्रकाश के आलोक में कालिदास समीक्षा

Authors(1) :-डाॅ. नंदिता मिश्रा

महाकवि के प्रति इस प्रकार की दोष दृष्टि का भी निवारण हो जाता है। जहाँ तक काव्यप्रकाशकार के बारे में कहा जा सकता है तो वे एक लक्षणग्रन्थकार हैं उसी दृष्टि से शास्त्र का निरूपण करते हैं और उदाहरण में अनेकानेक कवियों का उल्लेख करते हैं। उनकी स्वयं की दृष्टि में महाकवि कालिदास एक अद्वितीय कवि हैं जिनके लिए स्वयं उन्हें लिखना पड़ता है कालिदासादीनामिव यशः। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि आचार्य मम्मट की दृष्टि में भी महाकवि कालिदास असंदिग्ध रूप से महाकवि है।

Authors and Affiliations

डाॅ. नंदिता मिश्रा
असिस्टेंट प्रोफेसर,संस्कृत विभाग, जवाहर लाल नेहरू स्मारक पी.जी, काॅलेज, महाराजगंज, उत्तर प्रदेश, भारत।

काव्यप्रकाश, कालिदास, दोष, शास्त्र, लक्षणग्रन्थ, मम्मट।

  1. तरङ्गभ्रूभङ्गा क्षुभितविहगश्रेणिरशना विकर्षन्ती फेनं वसनमिव संरम्भशिथिलम्। यथाविद्धं याति स्खलितमभिसन्धाय बहुशो नदीरूपेणेयं ध्रुवमसहना सा परिणत।। - ध्वन्यालोक, पृ0 212
  2. तिष्ठेत्कोपवशात्प्रभावपिहिता दीर्घं न सा कुप्यति स्वर्गायोत्पतिता भवेन्मयि पुनर्भावार्द्रमस्य मनः। तां हर्तुंविबुधद्विषोऽपि न च मे शक्ताः पुरावेर्तिनीं सा चात्यन्तमगोचरं नयनयोर्यातेति कोऽयं विधिः।। - लोचन, पृ0 184
  3. द्वयं गतं ........................प्रभृति यह पद्य आचार्य मम्मट ने स्वयं दोष प्रकरण में दो बार उद्धृत किया है।
  4. आचार्य रेवाप्रसाद द्विवेदी द्वारा सम्पादित तथा काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, से प्रकाशित।
  5. महाकविसम्बन्धिनां कुमारसम्भवादीनाम्। सा0चू0, पृ0 16
  6. महाकविसम्बन्धिनां रघुवंशादीनाम्, न तु रामायणादीनाम्। सु0सा0, पृ0 17
  7. येनास्निन्नतिविचित्रकविपरम्परावाहिनि संसारे कालिदासप्रभृतयो द्वित्राः चषा वा महाकवय इति गण्यन्ते। ध्वन्यालोक, पृ0 94
  8. क्वकार्यं शशलक्षणः क्व च कुलं भूयोऽपि दृश्येत सा दोषाणां प्रशमाय मे श्रुतमहो कोपेऽपि कान्तं मुखम्। किं वक्ष्यन्त्यापकल्मषाः कृतधियः स्वप्नेऽपि सा दुर्लभा चेतः स्वास्थ्यमुपैहि कः खलु युवा धन्योऽधरं धास्यति।। लोचन, पृ0 186
  9. तत्र श्रृगारस्य द्वौ भेदौ, सम्भोगी विप्रलम्भश्च। तत्राद्यः परस्परावलोकनालिङ्गनाधपानपरिचुम्बनाद्यनन्तभेदत्वाद-परिच्छेद्य इत्येक एव गण्यते। का0प्र0, पृ0 13 अपरस्त अभिलाषविरहेष्र्याप्रवासशापहेतुक इति प´्चविधः। का0प्र0,पृ0 136
  10. मेघूदतम, उ0मे0, 47
  11. अभिज्ञानशाकुन्तलम्, 1/7
  12. कुमारसम्भवम्, 3/67
  13. काव्यप्रकाश, 247
  14. त्रिधेति व्रीडाजुगुप्साऽमङ्गलव्य´्जकत्वाद्। का0प्र0 319
  15. विक्रमोर्वशीयम्, 4/22
  16. भाव्यमङ्गलादिसूचने कामशास्त्रस्थितौ च न दोषत्वम् वैमुख्याभावात् । शिवलिङ्ग-भगिनी-ब्रह्माण्डादिशब्देषु तु समुन्नीतगुप्तलक्षितेष्वसभ्यार्थानुपस्थितेर्नायं दोषः। सुधासागर टीका, पृ0 321
  17. कुमारसम्भव, 3/55
  18. काव्यप्रकाश, पृ0 327
  19. कुमारसम्भव, 5/72
  20. काव्यप्रकाश, श्रीनिवास शास्त्री, पृ0 293
  21. विक्रमोर्वशीयम्, 4/7
  22. रघुवंश, 1/21
  23. कुमारसम्भव, 3/18
  24. कुमारसम्भव, 5/71
  25. अत्र त्वं शब्दानन्तरं चकारो युक्तः। का0प्र0, 394
  26. विक्रमोर्वशीयम्, 4/62
  27. विक्रमोर्वशीयम् 4/9
  28. विक्रमोर्वशीयम् 1/10
  29. रघुवंश, 1/2
  30. कुमारसम्भव, 1/12
  31. सुधासागर टीका, पृ0 321

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020
Date of Publication : 2020-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 295-303
Manuscript Number : SHISRRJ20388
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. नंदिता मिश्रा, "काव्यप्रकाश के आलोक में कालिदास समीक्षा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 5, pp.295-303, September-October.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20388

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