किरातार्जुनीयम् पर उपजीव्य ग्रन्थों का प्रभाव

Authors(1) :-दिनेश प्रताप मौर्य

रामायण, महाभारत तथा पुराण-साहित्य समस्त लौकिक-संस्कृत वाड्.मय के उपजीव्य ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों से ही कथा-भावों को ग्रहण करके उत्तरवर्ती कवियों- महाकवियों ने अपनी यशःकाय स्वरूप कृतियों का सर्जन किया है। 6वीं शती ई0 के पुरोधा महाकवियों में अग्रगण्य तथा बृहत्त्रयी के प्रथम कवि भारवि ने भी इस परम्परा का अनुकरण करते हुए महाभारत तथा शिवमहापुराण के प्रसंगों एवं उपख्यानों को आधार बनाकर अष्टादशसर्गोपेत एक प्रशस्त महाकाव्य की सर्जना की। भारवि की कृति पर उसके उपजीव्य ग्रन्थों के प्रभाव का उद्घाटन ही प्रस्तुत शोध-पत्र का विवेच्य है।

Authors and Affiliations

दिनेश प्रताप मौर्य
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, नेहरू ग्राम भारती मानित वि0वि0, प्रयागराज,उत्तर प्रदेश।

भारवि, किरातार्जुनीयम्, महाभारत, शिवपुराण, नामकरण, कथानक, भाव-साम्य, भाषाशैली।

  1. “एकेन वर्णेन रसेनचाम्भश्चयुतं नभस्तो वसुधाविशेषात्।नानारसत्वं बहुवर्णतां च गतं परीक्ष्यं क्षितितुल्यमेव।।’ बृहत्संहिता 54-2
  2. इति श्रीमहाभारते शतसाहस्त्र्यां संहितायां वैयासिक्यामारण्यपर्वणि कैरातपर्वणि मुनिशंकरसंवादेऽष्टत्रिंशोध्यायः।।
  3. (क) “कैरातंवेषमास्थाय काञ्चनद्रुमसन्निभम्। विभ्राजमानो वपुषा गिरिर्मेरुरिवापरः।।’ म.भा.व.प.-39/2(ख) “किरातवेषसंछन्नः स्त्रीभिश्चापि सहस्रशः। अशोभत तदा राजन्स देशोऽतीव भारत।।-म.भा.व.प.-39/5
  4. “इति श्री शिवमहापुराणे तृतीयायां शतरूद्र संहितायां। किरातावतारवर्णने भिल्लार्जुनसंवादोनाम चत्वारिंशोऽध्यायः।।’शि0पु0 अध्याय-40
  5. “ततस्ते प्रययुः सर्वे पाण्डवा धर्मचारिणः। ब्राह्मणैर्बहुभिः सार्धं पुण्यं द्वैतवनं सरः।।-म.भा.व.प.-24/13
  6. शिवपुराण रु0सं0-अध्याय-37-41
  7. “पाण्डवा अथ भिल्लं च प्रेषयामासुरोजसा।गुणानां च परीक्षार्थं तस्य दुर्योधनस्य च।।’- शि0पु0 रुद्र संहिता-37/18
  8. “श्रियः कुरूणामधिपस्य पालनीं प्रजासु वृत्तिं यमयुड्.क्त वेदितुम्। स वर्णिलिड्.गी विदितः समाययौ युधिष्ठिरं द्वैतवने वनेचर।।’-किरातार्जुनीयम्-1/1 9.म0भा0व0प0-27/10 10.किरात.-1/38
  9. द्रष्टव्य-म0भा0व0प0-27/22 एवं किरात0-1/34
  10. म0भा0व0प0-28/28
  11. तदेव-28/27
  12. किरात0-1/35
  13. “व्यासोपदिष्टं यद्राजंस्त्वया कार्यं प्रयत्नतः।
  14. शुभप्रदोऽस्तु ते पन्थाश्शकंरश्शड्.करोतु वै।।- शि0पु0 रु0सं0-38/6
  15. “भवान् धर्मो धर्म इति सततं व्रतकर्शितः।
  16. कच्चिद् राजन् न निर्वेदादापन्नः क्लीबजीविकाम्।।-म0भा0व0प0-33/13
  17. किरात0-2/12
  18. का0 नी0-12/7/36

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019
Date of Publication : 2019-05-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 197-200
Manuscript Number : SHISRRJ203915
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

दिनेश प्रताप मौर्य, "किरातार्जुनीयम् पर उपजीव्य ग्रन्थों का प्रभाव", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 3, pp.197-200, May-June.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203915

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