Manuscript Number : SHISRRJ20394
प्राचीन भारत में सिचांई प्रबंधन
Authors(1) :-डाॅ0 विजय कुमार सिचाई को भारतीय कृषि का आधारभूत स्तम्भ माना जाता है। प्राचीन भारत में अर्थव्यवस्था का आधार कृषि और पशुपालन ही रहा है। जलस्रोतों एवं नदियों को सदा जल से पूरित रहने की कामना की गई। सैन्धव सभ्यता के विकास में अन्नोत्पादन की महत्वपूर्ण भूमिका रही। बन्धों के अतिरिक्त कृषि भूमि के चारों ओर मेड़़ बनाकर ऋतु में जल को संचित कर उसमें खेती की जाती थी। सिंचाई के लिए व्यक्तिगत और राजकीय दोनों स्तर, मौर्य शासकों की सिंचाई प्रबन्धन के अनुभाग थे। सिंचाई के लिए चार प्रमुख प्रणालियों का प्रयोग किया जाता था- हाथों से, कंधों पर पानी ले जाकर, यंत्रों के द्वारा या नहरों, ताड़ागों के द्वारा। वायु द्वारा (पवन चक्की) खींचे हुए पानी को स्रोतयंत्र प्रावर्तिमम् कहते थे तथा सेतुबंध के अनर्तगत बांध बनाकर उससे नहरें या नालियां निकालकर सिंचाई की जाती थी। अखण्ड भारत के निर्माता चन्द्रगुप्त मौर्य के कार्यकाल में सुदर्शन झील का निर्माण हुआ। जल प्रबन्धन का पहला प्रमाण प्राचीन भारत के धौलावीरा में स्थित अनेक जलाशयों से मिला। सिंचाई कृषि में एक ऐसी नवीनता थी, जिसके परिणामस्वरूप प्राचीन भारतीय नियमित रूप से फसल, भोजन और पशुधन में सक्षम हो गये, जिससे सभ्यता का विकास तीव्र गति से हुआ।
डाॅ0 विजय कुमार कूप, बावडी, वृत्र , रोधस, अवत , उत्स , सुषिरा, अदेवमातृक । Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019 Article Preview
विभागाध्यक्ष एवं असि0 प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास विभाग, इ0 सि0 स्0 सं0 से0 राजकीय महाविद्यालय, पचवस, बस्ती, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2019-05-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 122-126
Manuscript Number : SHISRRJ20394
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20394