Manuscript Number : SHISRRJ20398
पं. दीनदयाल उपाध्याय एकात्मक मानववाद के द्रष्टा और भारतीय जनसंघ के महामंत्री एवं अध्यक्ष का चिन्तन विमर्श
Authors(1) :-डॉ. जगदीश प्रसाद जाटः दीनदयाल उपाध्याय 20वीं सदी के उत्तरार्द्ध के महापुरूष हैं, जब विश्व में अनेक विचार परम्पराएं बहुत प्रखरता से प्रचलित थीं। सोलहवीं शताब्दी के यूरोपीय पुनर्जागरण के बाद की चार शताब्दियों में विचारों ने एक वैश्विक आयाम ग्रहण कर लिया था। अब दृश्यमान विश्व कोई अबूझ पहेली नहीं रह गया था। साहसिक विश्वयात्रियों ने भू–पटल की परिक्रमा कर डाली थी। विज्ञानवाद, भौतिकतावाद एवं मानववाद ने ईश्वर की रहस्यमय सत्ता को एक चुनौती दे दी थी। रहस्यात्मकता पर विज्ञान ने चोट की, श्रद्धामूलक आस्थाओं को तर्क ने हिला दिया तथा अब भगवत्कृपा के स्थान पर विवेक का भरोसा हो चला था। "थियोक्रेसी' को चुनौती देते हुए सैक्युलरिज्म, लोकतंत्रात्मक व्यक्तिवाद व समाजवाद की धारणाएं प्रबल हो गई थीं। यूरोप का कायापलट हो गया था।
डॉ. जगदीश प्रसाद जाटः Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, स्वः लक्ष्मी कुमारी बधाला गर्ल्स पी.जी. कॉलेज गोविन्दगढ़, चौमूँ (जयपुरम्)
Date of Publication : 2019-05-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 158-162
Manuscript Number : SHISRRJ20398
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20398