संस्कृत नाटकों में प्राकृत भाषा की प्रासंगिकता

Authors(2) :-वीरेन्द्र सिंह, प्रो. (डॉ0) मनीष खैमरिया

संस्कृत भाषा को सृजनात्मक रूप देने में शताब्दियाँ गुजर गयीं मानव इतिहास के विकास में मौलिक योगदान रहा है। मानव जाति की प्राचीनतम् पुस्तक ऋषि की ऋचाओं के जन्मदाताओं ने अपने मौलिक विचारों, भावों, कल्पनाओं और धारणाओं को मूर्तरूप देने के लिए उस समय की शैशव कालीन अनधिवसित भाषा को सशक्त बनाने में कितना श्रम किया होगा। प्राकृत और संस्कृत का यह मैत्रीबंधन सृजनात्मक साहित्य में विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है। नाटकों में दोनों भाषाओं का योगपद्य और अलंकारशास्त्रों से सैद्धान्तिक उदाहरण के लिए प्राकृत साहित्य का उपयोग निःसंशय सिद्ध करता है कि एक के ज्ञान के बिना दूसरे का ज्ञान अपूर्ण माना जाता रहा। सृजनात्मक साहित्य के अतिरिक्त, जैन धर्म दर्शन के क्षेत्र में प्राकृत का ही साम्राज्य था। अतः दार्शनिक विभिन्न प्रस्थानों के आचार्यों के लिए भी प्राकृत का ज्ञान अपरिहार्य था।

Authors and Affiliations

वीरेन्द्र सिंह
शोध-छात्र (संस्कृत विभाग), जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (म.प्र.), भारत।
प्रो. (डॉ0) मनीष खैमरिया
विभागाध्यक्ष संस्कृत, महारानी लक्ष्मीबाई शास. उत्कृष्ट, महाविद्यालय ग्वालियर (म.प्र.), भारत।

सृजनात्मक, नाटकों में, अलंकार शास्त्रों, प्राकृत साहित्य, सर्जनात्मक, प्रस्थानों के, आचार्यों के, अपरिहार्य।

  1. राम पाण्डेय, राम अवध मिश्र रविनाथ - पालि प्राकृत अपभ्रंश संग्रह - प्रकाशन विश्वविद्यालय प्रकाशन चैक वाराणसी - संस्करण - २॰॰६ ई. पृ.सं. ४२
  2. राम पाण्डेय, राम अवध मिश्र रविनाथ - पालि प्राकृत अपभ्रंश संग्रह - प्रकाशन विश्वविद्यालय प्रकाशन चैक वाराणसी - संस्करण - २॰॰६ ई. पृ.सं. ४३
  3. जैन जगदीश चन्द्र - प्राकृत साहित्य का इतिहास - चैखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी - संस्करण २॰१४ - पृ.सं. ५१४
  4. जैन जगदीशचन्द्र - प्राकृत साहित्य का इतिहास - चैखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी - संस्करण २॰१४ - पृ.सं. ५२१-५२२
  5. जैन जगदीशचन्द्र - प्राकृत साहित्य का इतिहास - चैखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी - संस्करण २॰१४ - पृ.सं. ५१२
  6. जैन जगदीशचन्द्र - प्राकृत साहित्य का इतिहास - चैखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी - संस्करण २॰१४ - पृ.सं. ५२॰
  7. जैन जगदीशचन्द्र - प्राकृत साहित्य का इतिहास - चैखम्बा सुरभारती प्रकाशन वाराणसी - संस्करण २॰१४ - पृ.सं. ५२१

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021
Date of Publication : 2021-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 13-17
Manuscript Number : SHISRRJ21412
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

वीरेन्द्र सिंह, प्रो. (डॉ0) मनीष खैमरिया , "संस्कृत नाटकों में प्राकृत भाषा की प्रासंगिकता", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 1, pp.13-17, January-February.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21412

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