Manuscript Number : SHISRRJ21414
आदिवासी साहित्य में आदिवासी नाटकों व रंगमंच का वर्तमान तथा भविष्य
Authors(1) :-मनीष कुमार हिन्दी मे भी आदिवासी नाटकों को स्वीकार्यता प्राप्त होती जा रही है। हिन्दी रंगमंच में स्त्री ने अपना परचम लहराया। चाहे वह नाटककार के रूप में हो या निर्देशक के रूप में अन्यथा रंगकर्मी के रूप में। सभी रूपों में भारतीय रंगमंच मे स्त्री की उपस्थिति को स्वीकार कर लिया है। इसी तरह आदिवासी नाटक और रंगमंच हर भाषा में उपलब्ध होने के साथ साथ अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे है। नाटक व रंगमंच के माध्यम से आदिवासी समाज अपने जीवन के सभी परिदृश्यों को सहजता,गंभीरता, सरलता, उद्देश्यपूर्ण आदि बिंदुओं से उभर रहे है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे बड़े संस्थानों को भी आदिवासी कलाओं व रंगमंच का सहारा लेना पड़ रहा है। यह एक नएपन की स्वीकार्यता है। आदिवासी नाटकों व उनके रंगमंच मे नयापन है, प्रभावी पन है। जिससे आदिवासी कलाकारों और नाटककारों की पहचान भी धीरे धीरे वृहत रूप धारण कर रही है। जिससे आदिवासी कलाकारों व नाटककारों के साथ साथ निर्देशक भी अपनी कला का परचम लहरा रहे है। इसमें गैर आदिवासी कलाकारो और नाटककारों का भी बड़ा योगदान है। जो निष्पक्षता के साथ आदिवासी समाज के मुद्दों को गंभीरता से लेकर रचना व मंच पर स्थान दे रहे है। हिन्दी मे आदिवासी नाटक लिखने वाले रचनाकारों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। हिन्दी आदिवासी नाटक अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्परा के मानव कल्याण के उद्देश्य से मानवीयता,सामूहिकता भी भारतीय लोक समाज में प्रसारित कर रहे है।
मनीष कुमार आदिवासी‚ नाटक‚ हिन्दी‚ संस्कृति, रंगमंच‚ मानवीयता, सामूहिकता। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021 Article Preview
पी-एच.डी. शोध छात्र‚ विश्वभारती, शांतिनिकेतन, प. ब. भारत।
Date of Publication : 2021-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 24-31
Manuscript Number : SHISRRJ21414
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21414