आदिवासी साहित्य में आदिवासी नाटकों व रंगमंच का वर्तमान तथा भविष्य

Authors(1) :-मनीष कुमार

हिन्दी मे भी आदिवासी नाटकों को स्वीकार्यता प्राप्त होती जा रही है। हिन्दी रंगमंच में स्त्री ने अपना परचम लहराया। चाहे वह नाटककार के रूप में हो या निर्देशक के रूप में अन्यथा रंगकर्मी के रूप में। सभी रूपों में भारतीय रंगमंच मे स्त्री की उपस्थिति को स्वीकार कर लिया है। इसी तरह आदिवासी नाटक और रंगमंच हर भाषा में उपलब्ध होने के साथ साथ अपनी अलग पहचान बनाते जा रहे है। नाटक व रंगमंच के माध्यम से आदिवासी समाज अपने जीवन के सभी परिदृश्यों को सहजता,गंभीरता, सरलता, उद्देश्यपूर्ण आदि बिंदुओं से उभर रहे है। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय जैसे बड़े संस्थानों को भी आदिवासी कलाओं व रंगमंच का सहारा लेना पड़ रहा है। यह एक नएपन की स्वीकार्यता है। आदिवासी नाटकों व उनके रंगमंच मे नयापन है, प्रभावी पन है। जिससे आदिवासी कलाकारों और नाटककारों की पहचान भी धीरे धीरे वृहत रूप धारण कर रही है। जिससे आदिवासी कलाकारों व नाटककारों के साथ साथ निर्देशक भी अपनी कला का परचम लहरा रहे है। इसमें गैर आदिवासी कलाकारो और नाटककारों का भी बड़ा योगदान है। जो निष्पक्षता के साथ आदिवासी समाज के मुद्दों को गंभीरता से लेकर रचना व मंच पर स्थान दे रहे है। हिन्दी मे आदिवासी नाटक लिखने वाले रचनाकारों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। हिन्दी आदिवासी नाटक अपनी संस्कृति, सभ्यता, परम्परा के मानव कल्याण के उद्देश्य से मानवीयता,सामूहिकता भी भारतीय लोक समाज में प्रसारित कर रहे है।

Authors and Affiliations

मनीष कुमार
पी-एच.डी. शोध छात्र‚ विश्वभारती, शांतिनिकेतन, प. ब. भारत।

आदिवासी‚ नाटक‚ हिन्दी‚ संस्कृति, रंगमंच‚ मानवीयता, सामूहिकता।

  1. गिऑर्गी प्लेखानोव, कला के सामाजिक उद्गम, पृष्ठ संख्या.104, राजकमल प्रकाशन, पहला संस्करण:2003
  2. गिऑर्गी प्लेखानोव, कला के सामाजिक उद्गम, पृष्ठ संख्या.104, राजकमल प्रकाशन, पहला संस्करण:2003
  3. डॉ प्रमोद कुमार मीणा, आदिवासी जीवन जगत की बारह कहानियां एक नाटक, पृष्ठ संख्या.8, अनुज्ञा बुक्स प्रकाशन, प्रथम संस्करण:2017
  4. गिऑर्गी प्लेखानोव, कला के सामाजिक उद्गम, पृष्ठ संख्या.82, राजकमल प्रकाशन, पहला संस्करण:2003
  5. नेमिचन्द्र जैन, रंग परम्परा, पृष्ठ संख्या.13, वाणी प्रकाशन, द्वितीय संस्करण:1996
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  7. विनोद कुमार,आदिवासी जीवन जगत की बारह कहानियां एक नाटक, पृष्ठ संख्या.119-144, अनुज्ञा बुक्स प्रकाशन, प्रथम संस्करण:2017
  8. हृषिकेश सुलभ, धरती आबा, पृष्ठ संख्या.9-96, राजकमल प्रकाशन, संस्करण: पहला,2010
  9. विभु कुमार, हवाओं का विद्रोह, पृष्ठ संख्या.1-76, नेशनल पब्लिशिंग हाउस, प्रथम संस्करण:1986
  10. हबीब तनवीर, हिरमा की अमर कहानी, पृष्ठ संख्या.7-72, पुस्तकायन प्रकाशन, संस्करण:1990
  11. बादल सरकार, भोमा, पृष्ठ संख्या.4-48, समानांतर पत्रिका,समानांतर प्रकाशन,संस्करण:2017
  12. विमल कुमार टोप्पो, कोड़ा राज्य, पृष्ठ संख्या.322-351, पक्षधर पत्रिका प्रकाशन, संस्करण:जुलाई 2018- जून 2019
  13. अनिल रंजन भौमिक, स्वप्न दु:स्वप्न, पृष्ठ संख्या.68-83, समानांतर पत्रिका, समानांतर प्रकाशन, संस्करण:2017

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021
Date of Publication : 2021-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 24-31
Manuscript Number : SHISRRJ21414
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

मनीष कुमार, "आदिवासी साहित्य में आदिवासी नाटकों व रंगमंच का वर्तमान तथा भविष्य ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 1, pp.24-31, January-February.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21414

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