Manuscript Number : SHISRRJ21420
मंगलेश डबराल (आग और राग के कवि)
Authors(1) :-डाॅ0 राजेश कुमार मिश्र उम्मीद की थरथराती लौ आखिर बुझ गई। कवि के रूप में मंगलेश डबराल अपने बहुत से अग्रज और प्रसिद्ध कवियों के रहते हुए काफी पहले एक अतुलनीय व्यक्तित्व अर्जित कर चुके थे। इस वाक्य को उनके निधन के अवसर पर की गई भावुक टिप्पणी न समझा जाए कि हिंदी में उनके जैसा कोई दूसरा कवि नहीं था। उनका जन्म 18 मई, 1948 को उत्तर प्रदेश (अब उत्तराखंड) के टिहरी गढ़वाल के काफलपानी गांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। बहुत से युवाओं की तरह वे पहाड़ से अपने सपने लेकर नीचे उतरे और देखते-देखते हिंदी के वाम प्रगतिशील-जनपक्षीय पत्रकारिता और साहित्य का एक जरूरी नाम बन गए। उनकी कविता में पहाड़ के कठोर जीवन में बसे पानी के स्त्रोंतो की धार हमेशा बनी रही। इसे आद्रता और करूणा में डूबी उनकी कविता के स्वर में हमेशा महसूस किया जाता रहा।
डाॅ0 राजेश कुमार मिश्र मंगलेश, डबराल, आग, राग, कवि। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021 Article Preview
सहायक आचार्य, हिन्दी विभाग, मर्यादा देवी कन्या पी0जी0 कालेज, बिरगापुर, हनुमानगंज, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2021-02-28
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 94-98
Manuscript Number : SHISRRJ21420
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21420