पदुमनदास का अलंकार विवेचन

Authors(1) :-डाॅ. संदीप कुमार मिश्रा

अलंकारों का लक्षण उदाहरण रूप में सर्वप्रथम विवेचन भरत के ‘नाट्यशाó’ में मिलता है। उन्होंने अलंकार का प्रयोग सामान्य अर्थ (भूषण) में किया है, शाóीय अर्थ में नहीं। उन्होंने-उपमा, रूपक, दीपक और यमक का निर्देश किया है। भरत ने तो केवल चार भूषणों का लक्षण निरूपित किया किन्तु परवर्ती आचार्यों के लिये वाग्व्यापार-आनन्त्य के विवेचन का क्षितिज भी उद्घाटित कर दिया। इसीलिए अलंकार-निरूपण के श्रीगणेश का श्रेय तो भरत को अवश्य है, किन्तु उसका सम्यक् एवं वैज्ञानिक विवेचन भामह के ‘काव्यालंकार’ से ही प्रारम्भ होता है। भामह ने वाणी के सम्पूर्ण व्यापार को दो भागों में विभाजित कियादृ (क) वक्रोक्ति और (ख) स्वभावोक्ति। वक्रोक्ति सभी अलंकारों का मूलभूत कारण है और इसीलिए हेतु, सूक्ष्म तथा लेश की अलंकारता उन्हें स्वीकार्य नहीं। स्वभावोक्ति को उन्होंने वार्ता की संज्ञा प्रदान की। इसके अनुसार शब्द और अर्थ का वक्तापूर्ण अभिधान ही वस्तुतः अलंकार है। इन्होंने कुल 29 अलंकार माने हैं। भामह ने भरत निरूपित रसभावादि का परिग्रहण रसवदादि अलंकारों में करके प्रकारान्तर से अलंकार का आमत्व स्थापित किया।

Authors and Affiliations

डाॅ. संदीप कुमार मिश्रा
हिन्दी विभाग, प्रो. दीनानाथ पाण्डेय महाविद्यालय, बेर्राव, बादा, उत्तर प्रदेश, भारत

क्षतिज, वक्तापूर्ण, आत्मत्व, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति आदि।

  1. उपमा दीपकं चैव रूपकं यमकं तथा। काव्यस्यैते ह्यालंकाराश्चत्वार परिकीर्तिता।।दृ भरत-नाट्यशाó, 16-40
  2. भामह-काव्यालंकार, 1-30ए 3-87
  3. वहीं, 1-36
  4. वहीं, 3-1ए7
  5. काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते। ते चाद्यापि विकल्प्यन्ते कस्तान् कात्स्नेन वछयति।। भिन्नद्विधा स्वभावोक्तिवक्रोक्तिश्चेति वाङ्मयम्।।दृ दण्डी-काव्यादर्श, 2-1ए 363
  6. स्वभज्ञावोक्तिश्च जातिश्चेत्याद्या सालंकृतिर्यथा। वहीं, 2-28
  7. हेतुश्च सूक्ष्म लेशौ च वाचामुŸामम् भूषणम्। वहीं, 2-235
  8. जाति क्रिया गुण द्रव्य स्वभावाख्यानमीदृशम्। शाóेष्वस्यैव साम्राज्यंकाव्येष्वप्येतदीापिं्सतम्।। वहीं, 2-13 9ण् वहीं, 2-275
  9. उ˜ट-काव्यालंकारसारसंग्रह, पृष्ठ36
  10. काव्यशोभायाः कर्तारो धर्मा गुणाः। वामन-काव्यालंकारसूत्र, 3-1-1
  11. तदतिशयहेतवस्त्वलंकाराः। वही, 3-1-2
  12. काव्यं ग्राह्यमलंकारात्। सौन्दर्यमलंकारः। वही, 1-1-2
  13. डाॅ. भोलाशंकर व्यास-भारतीय साहित्यशाó और काव्यालंकार, पृष्ठ 27
  14. कन्हैयालाल पोद्दार-अलंकारमंजरी, पृष्ठ 19
  15. जदपि सुजाति सुलच्छनी सुबरन सरस सुवृŸा। भूषण बिनु न बिराजई, कबिता वनिता मित।।दृ केशवदास-कविप्रिया, 4-1
  16. भामह-काव्यालंकार, 1-13
  17. केशवदास-कविप्रिया, 3-7
  18. अमरचन्द्र यति-काव्यकल्पलतावृŸिा, पृष्ठ28 एवं केशव मिश्र अलंकारशेखर, पृष्ठ 61.65
  19. डाॅ. ओमप्रकाश शर्मा-रीतिकालीन अलंकार साहित्य का शाóीय विवेचन, पृष्ठ 79
  20. अलंकार संजोग ते, भाषाभूषण नाम। जसवन्त सिंह-भाषाभूषण, छन्द 211
  21. केशवमिश्र-अलंकारशेखर, पृष्ठ 29
  22. पदुमनदास-काव्यमंजरी, 11-11
  23. केशवमिश्र-अलंकारशेखर, पृष्ठ 32
  24. पदुमनदास-काव्यमंजरी, 11-61
  25. केशवमिश्र-अलंकारशेखर, पृष्ठ 38
  26. पदुमनदास-काव्यमंजरी, 11-36
  27. केशवमिश्र-अलंकारशेखर, पृष्ठ 35
  28. पदुमनदास-काव्यमंजरी, 10-2

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 2 | March-April 2021
Date of Publication : 2021-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 84-91
Manuscript Number : SHISRRJ214218
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. संदीप कुमार मिश्रा , "पदुमनदास का अलंकार विवेचन", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 2, pp.84-91, March-April.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214218

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