Manuscript Number : SHISRRJ214218
पदुमनदास का अलंकार विवेचन
Authors(1) :-डाॅ. संदीप कुमार मिश्रा
अलंकारों का लक्षण उदाहरण रूप में सर्वप्रथम विवेचन भरत के ‘नाट्यशाó’ में मिलता है। उन्होंने अलंकार का प्रयोग सामान्य अर्थ (भूषण) में किया है, शाóीय अर्थ में नहीं। उन्होंने-उपमा, रूपक, दीपक और यमक का निर्देश किया है। भरत ने तो केवल चार भूषणों का लक्षण निरूपित किया किन्तु परवर्ती आचार्यों के लिये वाग्व्यापार-आनन्त्य के विवेचन का क्षितिज भी उद्घाटित कर दिया। इसीलिए अलंकार-निरूपण के श्रीगणेश का श्रेय तो भरत को अवश्य है, किन्तु उसका सम्यक् एवं वैज्ञानिक विवेचन भामह के ‘काव्यालंकार’ से ही प्रारम्भ होता है। भामह ने वाणी के सम्पूर्ण व्यापार को दो भागों में विभाजित कियादृ (क) वक्रोक्ति और (ख) स्वभावोक्ति। वक्रोक्ति सभी अलंकारों का मूलभूत कारण है और इसीलिए हेतु, सूक्ष्म तथा लेश की अलंकारता उन्हें स्वीकार्य नहीं। स्वभावोक्ति को उन्होंने वार्ता की संज्ञा प्रदान की। इसके अनुसार शब्द और अर्थ का वक्तापूर्ण अभिधान ही वस्तुतः अलंकार है। इन्होंने कुल 29 अलंकार माने हैं। भामह ने भरत निरूपित रसभावादि का परिग्रहण रसवदादि अलंकारों में करके प्रकारान्तर से अलंकार का आमत्व स्थापित किया।
डाॅ. संदीप कुमार मिश्रा
क्षतिज, वक्तापूर्ण, आत्मत्व, वक्रोक्ति, स्वभावोक्ति आदि। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 2 | March-April 2021 Article Preview
हिन्दी विभाग, प्रो. दीनानाथ पाण्डेय महाविद्यालय, बेर्राव, बादा, उत्तर प्रदेश, भारत
Date of Publication : 2021-03-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 84-91
Manuscript Number : SHISRRJ214218
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214218