Manuscript Number : SHISRRJ214219
रस की ऐतिहासिकता
Authors(1) :-कु0 संजू जगन्नाथ जी ने अभिनवगुप्त आदि आचार्यों के मत को बताकर कहा है कि वस्तुतः ‘रसो वै सः’ इत्यादि श्रुति के स्वारस्य से रत्याद्यवच्छिन्नभग्नावरणाचित् अर्थात् रत्यादिभाव-विषयक आवरण-रहित आत्मचैतन्य ही रस है, न कि वह चैतन्य का विषय रत्यादि, क्योंकि यदि चैतन्य-विषयीभूत रति आदि को रस मान लिया जाय तो रस की चैतन्यता नहीं रहती है तब रस और चैतन्य में एकता को बतलाने वाली ‘रसो वै सः’ इत्यादि श्रुति के साथ विरोध हो जाता है। अतः रत्यादिविशिष्ट आवरण रहित आत्मचैतन्य ही रस है।
कु0 संजू रस, अभिनवगुप्त, जगन्नाथ, कव्यशास्त्रीय, अलौकिक, ऋग्वेद,संस्कृत। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021 Article Preview
शोधच्छात्रा, संस्कृत-विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2021-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 126-135
Manuscript Number : SHISRRJ214219
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214219