रस की ऐतिहासिकता

Authors(1) :-कु0 संजू

जगन्नाथ जी ने अभिनवगुप्त आदि आचार्यों के मत को बताकर कहा है कि वस्तुतः ‘रसो वै सः’ इत्यादि श्रुति के स्वारस्य से रत्याद्यवच्छिन्नभग्नावरणाचित् अर्थात् रत्यादिभाव-विषयक आवरण-रहित आत्मचैतन्य ही रस है, न कि वह चैतन्य का विषय रत्यादि, क्योंकि यदि चैतन्य-विषयीभूत रति आदि को रस मान लिया जाय तो रस की चैतन्यता नहीं रहती है तब रस और चैतन्य में एकता को बतलाने वाली ‘रसो वै सः’ इत्यादि श्रुति के साथ विरोध हो जाता है। अतः रत्यादिविशिष्ट आवरण रहित आत्मचैतन्य ही रस है।

Authors and Affiliations

कु0 संजू
शोधच्छात्रा, संस्कृत-विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।

रस, अभिनवगुप्त, जगन्नाथ, कव्यशास्त्रीय, अलौकिक, ऋग्वेद,संस्कृत।

  1. अभि0भा0पृ0 288; अ0को0 नानार्थ वर्ग, 227। रसः स्वादे जले वीर्ये शृङ्गारादौ विषे द्रवे। बोले रागे गृहे धातौ तिक्तादौ पारदेऽपि च।।-हेमकोश
  2. रसेन समगंस्महि-1-23-23।
  3. ऋ0 1-71-5
  4. ऋ0 1-105-2
  5. ऋ0 1-187-4, 5
  6. ऋ0 1-29-16
  7. ऋ0 5-43-4
  8. ऋ0 8-3-20/9-47-3
  9. ऋ0 9-16-1/9-23-5/9-38-5
  10. ऋ0 9-63-13
  11. ऋ0 9-67-3
  12. ऋ0 9-67-32
  13. ऋ0 9-84-5
  14. अथर्व0 1-28-3, 4-17-3 ।
  15. अथर्व0 6-67-1 ।
  16. ऐतरेय ब्रा0-7-31, 5-19, 8-8, 8-20।
  17. शत0ब्रा0-1-2-2-2, 1-3-1-25, 2-3-1-10, 3-1-4-3, 3-3-3-18
  18. छन्दसां रसो लोकानप्येष्यतीति तं परस्ताच्छन्दोभिः पर्यगृहात्......पुनः छन्दःसु रसमादधात्। सरसैर्हास्य छन्दोभिरिष्टं भवति सरसैश्छन्दोभिर्यज्ञं तनुते।’-शत0ब्रा0 1-2-41-8 ।
  19. छन्दोभिर्हि देवाः स्वर्गं लोकं समाश्नुवत।....यो वा ऋचि मदोयः सामन् रसो वै स तच्छन्दः स्वेवैतद्रसं दधाति....शत0ब्रा0 4-3-2-5
  20. शत0ब्रा0 4-6-9-16
  21. शत0ब्रा0 6-1-1-11-12/6-1-2-2, 3।
  22. शत0ब्रा0 6-5-4-12 ।
  23. शत0ब्रा0 6-1-2-4 ।
  24. शत0ब्रा0 6-7-3-3।
  25. तै0उ0-2-7 ।
  26. शत0ब्रा0 7-2-3-4।
  27. शत0ब्रा0 8-7-2-17 ।
  28. शत0ब्रा0 10-1-1-1-, 4-6/10-3-5-12।
  29. प्रश्नोप0-4-2/4-8/4-9, मुण्डको0 2-9/कठोप0-1-3-15, 2-1-3।
  30. तै0उ0-2-7/द्र0वही 2-9/2-2।
  31. छा0उ0-1, 2-3, 9।
  32. छा0उ0-4-17-5, 6।
  33. सूर्यमस्या वत्समाह साहचर्याद स-हरणाद्वा। नि0 2, 6, 20 ।

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021
Date of Publication : 2021-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 126-135
Manuscript Number : SHISRRJ214219
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

कु0 संजू, "रस की ऐतिहासिकता", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 1, pp.126-135, January-February.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214219

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