संस्कृत वाङ््मय के आलोक में सौन्दर्य के आस्वाद में निहित आनन्दानुभूति

Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति कपूर

संस्कृत काव्यशास्त्र के सभी सम्प्रदाय अपनी गरिमा और महनीयता को स्थापित करते हुए उसे ही काव्यात्मतत्त्व के रुप में प्रस्तुत करते हैं। उनका उद्देश्य काव्य-सौन्दर्य के समस्त उपादानों का अन्वेषण रहा है। सौन्दर्य के आस्वाद में निहित आनन्दानुभूति के संदर्भ मंे यह कहना युक्तियुक्त ही है कि जिनके पास दृष्टि है, अर्थात जो सहृदय प्राणी है, वही सौन्दर्य को कसौटी पर परखने में सक्षम है। इतरेतर सामान्य प्राणी नहीं। इस प्रकार सौन्दर्य अनुभवैकगम्य है। वस्तुतः कला एवं साहित्य का उपनिषद सौन्दर्य है। इसी से कला और साहित्य दोनों सरस और सार्थक होते हैं।

Authors and Affiliations

डाॅ0 ज्योति कपूर
एसोसियेट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, सदनलाल साॅवलदास, खन्ना महिला, महाविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।

संस्कृत, वाङ्मय, सौन्दर्य, आस्वाद।

  1. टाॅलस्टाय, ह्वाट इज आर्ट, लंदन 1946 पृ0- 123
  2. समीक्षाशास्त्र, सीताराम चतुर्वेदी, काशी- सं0 2010, पृ0 206
  3. इदं कविभ्यः पूर्वेभ्यो नमोवाकं प्रशास्महे
  4. विन्देम देवतां वाचममृतामात्मानः कलाम्। उत्तरामचरितम् प्रथम अंक, प्रथम श्लोक कुमारसंभव, पंचम सर्ग, प्रथम श्लोक।
  5. साहित्यदर्पण, प्रथम परिच्छेद पृष्ठ सं0- 19
  6. योऽर्थः सहृदयश्लाध्यः काव्यात्मेति व्यवस्थितः। ध्वन्यालोक - प्रथम उद्योत कारिका 2, वाच्यप्रतीयमानाख्यौ तस्य भेदावुभौ स्मृतौ।।
  7. प्रतीयमान पुनरन्यदेव वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम्।
  8. यत्तत्प्रसिद्धावयवातिरिक्तं विभाति लावण्यमिवाङ्गनासु।।
  9. ‘‘काव्यस्य हि ललितोचितसन्निवेशचारुणः’’- ध्वन्यालोक, प्रथम उद्योत, पृष्ठ सं0 67
  10. तेन ब्रूमः सहृदयमनः प्रीतये तत्स्वरुपम्- ध्वन्यालोक, प्रथम उद्योत, कारिका प्रथम ध्वन्योलक - 3/14, 4/5
  11. काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये। सद्यः परनिर्वृतये कान्तासम्मिततयोपदेयुजे ।। ‘‘काव्य का प्रधान लक्ष्य ‘‘सद्यः परिनिर्वृत्ति अर्थात् अपूर्व आनन्दानुभूति या रसास्वादन है।’’-काव्यप्रकाश, प्रथम उल्लास कारिका-2
  12. साहित्यदर्पण - तृतीय परिच्छेद पृ0-49
  13. 13 सत्त्वोद्रेकादखण्डस्वाप्रकाशानन्दचिन्मयः।
  14. वेधान्तरस्पर्शशून्यों ब्रहमास्वादसहोदरः।। साहित्यदर्पण, तृतीय परिच्छेद, कारिका 2,
  15. रसगंगाधर - प्रथमानन, (1)
  16. रसो वै सः, रसं ह्ये वायं लब्ध्वानन्दी भवति। इत्यादि श्रुतिः, सकलसहृदयप्रत्यक्षं चेति प्रमाणद्वयम्।। रसगंगाधर, पृ0 - 28 (निर्णयसागरप्रेस)
  17. ‘‘परमाह्लादाविनाभावितया प्रतीयमानः प्रपञ्चेऽस्मिन्रसोरमणीयतामावहतीति निर्विवादम्’’। रसगंगाधर, (पृ0 35, निर्णयसागर प्रेस)

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021
Date of Publication : 2021-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 55-59
Manuscript Number : SHISRRJ214235
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 ज्योति कपूर, "संस्कृत वाङ््मय के आलोक में सौन्दर्य के आस्वाद में निहित आनन्दानुभूति ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 5, pp.55-59, September-October.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214235

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