Manuscript Number : SHISRRJ214235
संस्कृत वाङ््मय के आलोक में सौन्दर्य के आस्वाद में निहित आनन्दानुभूति
Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति कपूर संस्कृत काव्यशास्त्र के सभी सम्प्रदाय अपनी गरिमा और महनीयता को स्थापित करते हुए उसे ही काव्यात्मतत्त्व के रुप में प्रस्तुत करते हैं। उनका उद्देश्य काव्य-सौन्दर्य के समस्त उपादानों का अन्वेषण रहा है। सौन्दर्य के आस्वाद में निहित आनन्दानुभूति के संदर्भ मंे यह कहना युक्तियुक्त ही है कि जिनके पास दृष्टि है, अर्थात जो सहृदय प्राणी है, वही सौन्दर्य को कसौटी पर परखने में सक्षम है। इतरेतर सामान्य प्राणी नहीं। इस प्रकार सौन्दर्य अनुभवैकगम्य है। वस्तुतः कला एवं साहित्य का उपनिषद सौन्दर्य है। इसी से कला और साहित्य दोनों सरस और सार्थक होते हैं।
डाॅ0 ज्योति कपूर संस्कृत, वाङ्मय, सौन्दर्य, आस्वाद। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021 Article Preview
एसोसियेट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग,
सदनलाल साॅवलदास, खन्ना महिला, महाविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2021-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 55-59
Manuscript Number : SHISRRJ214235
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214235