प्राचीन इतिहास की भारतीय ज्ञान परम्परा में शोध पाण्डुलिपि लेखन एवं उपकरण

Authors(1) :-भॅवरलाल कुमावत

पाण्डुलिपियों के लेखन में दो वस्तुएँ नितान्त अपेक्षित हैं । प्रथमवस्तु तो है लेखन की आधार - सामग्री अर्थात् वह वस्तु जिस पर कोई लेख लिखा जाता है । जैसा पहले स्पष्ट किया जा चुका है कि यह सामग्री पत्थर, मिट्टी, धातु, लकड़ी, वस्त्र, वृक्ष की छाल, वृक्ष का पत्र, पशुचर्म अथवा घास से बना कागज (पेपीरस) होता था । विश्व के विभिन्न भागों में इन्हीं आधारभूत पदार्थों पर अंकित अभिलेख प्राप्त हुए हैं । इसका विकासक्रम तथा उपलब्धि - विषयक विवरण आगे प्रस्तुत किया जायेगा ।

Authors and Affiliations

भॅवरलाल कुमावत
(राज्य स्तरीय पुरस्कृत शिक्षक) प्रधानाध्यापक, मातु श्रीमती रुकमा भाई रणछोड़ सिह राजपुरोहित राजकीय बालिका प्राथमिक संस्कृत विद्यालय मोहराई जिला पाली (राजस्थान) 306303

  1. चर्मपत्र (Parchment) के विषय में डॉ. सत्येन्द्र ने ‘पाण्डुलिपिविज्ञान’ (पृ०१६) पर एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी है । जब पर्गेमम के विश्वविद्यालय का विकास चरमशिखर पर पहुँच गयातब अलेक्जेण्ड्रिया के लोगों को चिन्ता हो गई कि हमारे ग्रंथागार का महत्त्व कहीं कम न हो जाय । फलतः (ईर्ष्यावश) उन्होंने पर्गेमम को पेपीरस देना बन्द कर दिया । तब पर्गेमम में लेखन - आधार के रूप में चर्मपत्र (Parchment) का अविष्कार किया गया । परन्तु यह चर्मपत्र पेपीरस की तरह वर्तुलाकार लपेटकर खरीते (Scrolls) के रूप में नहीं रखा जा सकता था, ठोस होने के कारण । अत: उन्हें पृष्ठानुसार व्यवस्थित किया गया तथा पन्नों की एक साथ (आधुनिक पुस्तक की तरह) सिलाई कर दी गई । चर्मपत्रों का वही स्यूत रूप कोडेक्स (Codex) के नाम से विख्यात हुआ जो आधुनिक जिल्दबन्द किताब का पूर्वरूप माना जाता है ।
  2. स्याही (मसि, मसी, मषी अथवा मशि) के सन्दर्भ में अत्यन्त विविध एवं विस्तृत सामग्री । द्रष्टव्य - पाण्डुलिपिविज्ञान - डॉ० सत्येन्द्र, पृ ० ५२-६०
  3. भारत में प्राचीनतम पाषाण शिलालेख सम्राट अशोक के हैं जो अफगानिस्तान से मन्दसौर तक व्याप्त हैं । इनका समय ई० पू० चौथी शती है ।
  4. ‘महानाविकबुद्धगुप्तस्य’ आलेखयुक्त मृत्फलक (ई० पू० प्रथमशती) मलेशिया के केड्डाह कस्बे से मिला जिसे पुराणों में कटाह कहा गया है । यह कलकत्ता संग्रहालय में सुरक्षित है ।
  5. ब्रिटिश संग्रहालय में १३३ फुट लम्बा पेपीरस खरीते (Scrolls) के रूप में सुरक्षित है जो ई० पू० २५०० का है तथा मिस्रदेश का लिखा हुआ है ।
  6. जैसलमेर के एक ग्रंथागार में कोशचर्मपत्र सुरक्षित । पीटर्सवर्ग संग्रहालय (रूस) में काशुगर से प्राप्त चर्मपत्र सुरक्षित जिस पर भारतीय लिपि में लेख अंकित है ।
  7. नेपाल में स्कन्दपुराण की ताडपत्रीय प्रति सुरक्षित । समय ई० सातवीं शती ।
  8. खरोष्ठी लिपि में अंकित धम्मपद जो खोतान से प्राप्त हुई है । समय - दूसरी तीसरी शती ईसवी ।
  9. तूल तो संस्कृत शब्द है जिसे कार्पास अथवा सामान्य भाषा में रूई भी कहते हैं । रूई को भी कूट कर कागज बनाने की विधि भारत में अत्यन्त प्राचीनकाल में प्रचलित थी । ईसा से १२७ वर्ष पूर्व जब सिकन्दर ने भारत पर आक्रमण कियातो उसके सेनापति निआर्कस ने अपना अनुभव लिखा कि भारतीय लोग रूई से कागज बनाते हैं । निआर्कस कुछ दिन पंजाब में रहा था तथा अपने अनुभवों को शब्दबद्ध भी किया था । जिआर्कस के उक्त ' अनुभव को एरिअन ने अपनी पुस्तक ' इण्डिया ' में उद्धृत किया है । अत: यह मानना कि, सर्वप्रथम चीनियों ने सन् १०५ में कागज बनाया गलत सिद्ध हो जाता है । यह विवरण: डॉ. सत्येन्द्र जी ने प्रस्तुत किया है । पाण्डुलिपिविज्ञान, पृ० १५०
  10. गंडी कच्छवि मुट्ठी संपुडफलए छिवाडीय । एयं प्रत्ययपणयं वक्खाण मिण भवेतस्य ।।- दशवैकालिक पर हरिभद्री टीका ।

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021
Date of Publication : 2021-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 46-54
Manuscript Number : SHISRRJ214236
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

भॅवरलाल कुमावत, "प्राचीन इतिहास की भारतीय ज्ञान परम्परा में शोध पाण्डुलिपि लेखन एवं उपकरण ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 5, pp.46-54, September-October.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214236

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