ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य और पोषण: एक समग्र दृष्टिकोंण

Authors(1) :-डाॅ. शाहेदा सिद्दीकी

कुपोषण की शब्दावली का उपयोग आमतौर पर अल्प-पोषण और अतिपोषण तथा इनसे संबंधित चुनौतियों को बताने के लिए किया जाता है। अधिकतर स्थितियों में किसी एक तरह के कुपोषण की अधिकता पाई जाती है। अब यह महसूस किया जा रहा है कि कई देशों में अल्प और अति-पोषण दोनों का प्रकोप नई चुनौती के रूप में उभर कर सामने आ रहा है जिसे ‘कुपोषण की दोहरी चुनौती’ बताया जा रहा है। यह दोहरा संकट स्वास्थ्य संबंधी प्रयासों के परिणामों और जनता की उŸारजीविता पर असर डालता है। भारत में अल्प-पोषण जहां प्रमुख और जबर्दस्त चुनौती बना हुआ है, वहीं अतिपोषण का मसला भी एक वास्तविकता है। इसलिए अब वक्त आ गया है जब भारत को कुपोषण से निबटने के लिए समग्र दृष्टिकोंण अपनाने की आवश्यकता है ताकि ‘कुपोषण की दोहरी चुनौती’ पर ध्यान केंद्रित किया जा सके और इससे निपटने के लिए उपयुक्त रणनीति अपनाई जा सके।

Authors and Affiliations

डाॅ. शाहेदा सिद्दीकी
प्राध्यापक (समाजशाó), शा. ठाकुर रणमत सिंह महाविद्यालय, रीवा, मध्य प्रदेश, भारत।

कुपोषण, अल्प-पोषण, अतिपोषण, उŸारजीविता, दोहरी चुनौती आदि।

  1. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट, 2020 (जनवरी)
  2. विश्व बैंक की रिपोर्ट, 2019 (जून)
  3. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट, 2018 (मार्च)
  4. महिला एवं बाल विकास
  5. ग्रामीण विकास प्राधिकरण, भारत सरकार ;2019
  6. स्वास्थ्य मंत्रालय, भारत सरकार
  7. रोजगार समाचार पत्र, (जनवरी, 2017

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 2 | March-April 2021
Date of Publication : 2021-03-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 07-15
Manuscript Number : SHISRRJ21425
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. शाहेदा सिद्दीकी, "ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य और पोषण: एक समग्र दृष्टिकोंण", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 2, pp.07-15, March-April.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21425

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