Manuscript Number : SHISRRJ214321
मोक्ष का स्वरूप एवं जैन-दर्शन में उसकी मूल प्रवृत्तियाँ
Authors(1) :-डाॅ॰ उमा शर्मा
दर्शन शब्द प्रेक्षण अर्थ वाली दृश् धातु से ल्युट् प्रत्यय के योग से निष्पन्न होता है जैन दर्शन जैन धर्म के विचार पक्ष का ही एक रूप है। जैन दर्शन के अनुसार आत्मा का अंतिम लक्ष्य मोक्ष है तथा जीव के समस्त कर्मों का क्षय हो जाना ही मोक्ष है। वस्तुतः कर्म रहित शुद्धावस्था को ही मोक्ष एवं निर्वाण कहा गया है। मोक्ष की प्राप्ति रत्नत्रय के सम्मिलित सहयोग से सम्भव है।
डाॅ॰ उमा शर्मा
मोक्ष, जैन, दर्शन, धर्म, निर्वाण, कर्म, आत्मा। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 3 | May-June 2021 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, मनानक चन्द ऐंग्लो संस्कृत काॅलेज़, मेरठ, उत्तर प्रदेश।,भारत
Date of Publication : 2021-06-10
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 103-108
Manuscript Number : SHISRRJ214321
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214321