Manuscript Number : SHISRRJ214322
समाज के चितेरे कथाकार प्रेमचन्द का उत्स संस्कृत साहित्य में
Authors(1) :-डाॅ0 मधु शर्मा सारांश-संस्कृत के नीतिकारों से लेकर आधुनिक भाषा साहित्य के प्रेमचंद आदि साहित्य-शिल्पियों की सर्जन-धर्मी चेतना प्रायः एक समान समाज-चिन्तन से परिचालित रही है। यही कारण हैं कि काव्य का विराट अन्तराल होते हुए भी उक्त दोनों ही प्रकार के कृतिकार आश्चर्यजनक रूप से सामाजिक सम्बन्धों की एक सी ही उष्मा के उपासक रहे हैं, युग के ध्रुवों पर स्थित होते हुए भी वे समाज-सम्बन्धी एक से ही मूल्यों और आदर्शों का आह्वान करते हैं। कहना ही होगा कि इस यात्रा में भारतीय वाङ्मय में अलंकार योजना बदली, काव्य ‘सौन्दर्य’ विषयक दृष्टि तथा सृष्टि बदली, शिल्प बदले यहाँ तक कि भाषाएँ भी बदल गईं पर समाज-चित्रण-गत जैसी अक्षुण्ण परम्परा यहाँ विद्यमान हैं वैसी निःसन्देह विश्व के किसी भी क्षेत्र में नहीं।
डाॅ0 मधु शर्मा समाज, कथाकार, प्रेमचन्द्र, संस्कृत, साहित्य, काव्यसौन्दर्य, मूल्य, आदर्श। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 3 | May-June 2021 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग नानकचन्द ऐंग्लो संस्कृत महाविद्यालय, मेरठ।,भारत
Date of Publication : 2021-06-10
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Page(s) : 109-116
Manuscript Number : SHISRRJ214322
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214322