आलाप और तान की भूमिका में 'रस' का महत्व

Authors(1) :-डा० अनिल कुमार शर्मा

‘रस’ शब्द का सम्बन्ध भारतीय संस्कृति, साहित्य और संगीत से अनादि काल से जुड़ा हुआ है। यह मानव के अंतःकरण में निवास करने वाली विशिष्ट भावनाआंे के चरमोत्कर्ष से उत्पन्न होता है अर्थात् जब कोई स्वाभाविक वस्तु अपनी चरम सीमा पर पहुँचकर मन में असाधारण नवीनता पैदा कर देती है तब उसे ‘रस’ कहते हैं। ‘भाव’ से ‘रस’ की निष्पत्ति होती है इसलिए इसे ‘भाव’ के अधीन माना गया है। ‘रसात्मकता’ ही संगीत का प्राण है। ‘भाव’ तथा ‘रस’ की ही प्रधानता ‘संगीत’ में रहती है। ‘रस’ न केवल आध्यात्मिक जीवन में बल्कि लौकिक जीवन की महत्वपूर्ण रागात्मक वृत्ति है रस और सौन्दर्य का परस्पर अटूट सम्बन्ध है। संगीत के क्षेत्र में स्थाई स्वर यानि अंश स्वर पर आश्रित समवादी स्वरों द्वारा उद्दीप्त, अनुवादी स्वरों से अभिव्यक्त माधुर्य की चेतना का ‘रस’ कहा गया है। अतः ‘रस’ एक विशेष प्रकार की आत्मतृप्ति है, आत्मसन्तोष है, जिसके प्रभाव में रजोगुण तमोगुण जैसे एक ऐसे सत्य का अनुभव कराते हैं। हमारे प्रचलित शास्त्रीय संगीत में राग प्रधान है। राग गायन में आलाप के अन्तर्गत भाव प्रदर्शन की प्रमुखता रहती है इसीलिए संगीत जैसी अमूर्त कला को रसोत्पत्ति, रसास्वादन का सशक्त साधन माना गया है। आलाप किसी भी राग को प्रस्तुत करने का प्रथम माध्यम है। प्राचीन काल में गायन को निबद्ध तथा अनिबद्ध इन दो प्रकारों में बाँटा गया था और उस समय का अनिबद्ध गान आज के आलाप-गायन के समान था। अतः संगीत श्रोताओं के हृदय में आलाप तान व बंदिश के माध्यम से रस सृष्टि करने में उचित योगदान देता है।

Authors and Affiliations

डा० अनिल कुमार शर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर (हिन्दी), सी०एस०एस०एस० (पी॰जी॰) कॉलिज, माछरा (मेरठ)।,भारत

आलाप, तान, रस, काव्य, महाकाव्य, भाव, रसात्मकता, संगीत, मन।

  1. संगीतायन - सीमा जौहरी
  2. संगीत मणि - डाॅ॰ महारानी शर्मा
  3. निबन्ध संगीत - लक्ष्मीनारायण गर्ग
  4. संगीत पत्रिका - हाथरस

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 3 | May-June 2021
Date of Publication : 2021-06-10
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 117-123
Manuscript Number : SHISRRJ214323
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डा० अनिल कुमार शर्मा, "आलाप और तान की भूमिका में 'रस' का महत्व ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 3, pp.117-123, May-June.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214323

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