मत्स्येन्द्र शुक्ल की कविताओं में गरीब किसानों का आत्मसंघर्ष

Authors(1) :-अर्चना शुक्ला

कवि मत्स्येन्द्र इस सत्य से परिचित हैं कि किसान ही इस धरती का प्रथम उत्पादक है। किसान की मेहनत के बिना किसी प्रकार का खाद्य उत्पादक सम्भव नहीं है। हम अपने मुख से जितनी भी वस्तुएँ पेट में उतारते हैं वह किसी न किसी रूप में हमें धरती से ही प्राप्त होती है। इसके साथ यह सत्य भी जुड़ा हुआ है कि प्रत्येक वस्तु जो धरती से पैदा होती है उसका जन्मदाता किसान ही होता है। किसान के बिना जीवन सम्भव है, पर किसानी के बिना नहीं।

Authors and Affiliations

अर्चना शुक्ला
शोध छात्रा, हिन्दी विभाग अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रींवा (म0प्र0), भारत।

मत्स्येन्द्र शुक्ल, कविता, गरीब किसान, आत्मसंघर्ष, जन्मदाता।

  1. हवा में खेलते शब्द, मत्स्येन्द्र शुक्ल, किताब महल प्रकाशन, इलाहाबाद, 2007, पृ0 70.
  2. आलोचना और आलोचना, डाॅ0 देवीशंकर अवस्थी, पृ0 83.
  3. हिन्दी साहित्य की भूमिका, हजारी प्रसाद द्विवेदी, पृ0 133.
  4. कहना बहुत कुछ, मत्स्येन्द्र शुक्ल, किताब महल प्रकाशन, इलाहाबाद, 2002, पृ0 60.
  5. कहना बहुत कुछ-पसीने से धोता चेहरा, मत्स्येन्द्र शुक्ल, किताब महल प्रकाशन, इलाहाबाद, 2002, पृ0 94.

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 3 | May-June 2021
Date of Publication : 2021-06-10
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 194-197
Manuscript Number : SHISRRJ214334
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

अर्चना शुक्ला, "मत्स्येन्द्र शुक्ल की कविताओं में गरीब किसानों का आत्मसंघर्ष", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 3, pp.194-197, May-June.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214334

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