Manuscript Number : SHISRRJ214428
भारत-नेपाल सीमा-विवाद में चीनी हस्तक्षेप का भारत की सुरक्षा पर प्रभाव
Authors(2) :-डाॅ0 नर्वदेश्वर पाण्डेय, राधा जायसवाल 17 वीं शताब्दी में जब नेपाल में गोरखों का शासन था। पृथ्वी नारायण शाह वहां के नरेश थे। तब भारत-नेपाल सीमा का निर्धारण किया गया । उस समय पृथ्वी नारायण ने नेपाल की सीमा को पश्चिम में पंजाब तथा पूर्व में सिक्किम तक बढ़ा लिया। ब्रिटिश और गोरखों का तराई इलाके में युद्ध हुआ और परस्पर बढ़ते विरोध के कारण सन् 1815 में सुगोली समझौता हुआ जिसमें पुनः मार्च 1816 में कुछ संशोधन किया गया। इस युद्ध में नेपाल को अधिक नुकसान उठाना पड़ा। संधि के पश्चात् सन् 1858 में ब्रिटिश सरकार ने तराई के कुछ हिस्सों को नेपाल को वापिस कर दिया गया। तब से भारत व नेपाल के बीच के एक स्थायी सीमा बन गई। पिछले कुछ दिनों में भारत और नेपाल के रिश्तों पर काफी चर्चा हुई है। चर्चा का केन्द्रीय बिन्दु रहा दोनों देशों के बीच का पुराना सीमा विवाद और इस विवाद में नेपाल की स्थिति को लेकर वहां की सरकार का अचानक आक्रमक हो जाना। कुछ जानकार लोगों का मानना है कि नेपाल के इस आक्रमक रूख के पीछे चीन का हाथ है और ऐसा करने के लिए चीन ने नेपाल को उकसाया होगा। यहां तक भारत के सेना प्रमुख जनरल एम. एस. नरवणे ने भी कह दिया था कि लिपुलेख दर्रे के पास भारत द्वारा सड़क बनाने का विरोध नेपाल “किसी और देश के निर्देशों”पर कर रहा है।
डाॅ0 नर्वदेश्वर पाण्डेय नेपाल, भारत, चीन, सीमा विवाद, कालापानी, लिपुलेख, हस्ताक्षेप। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 4 | July-August 2021 Article Preview
सह-आचार्य, रक्षा एवं स्त्रातजीय अध्ययन विभाग, का.सु. साकेत पी0जी0 कालेज, अयोध्या,उत्तर प्रदेश
राधा जायसवाल
अनुसंधित्सु, रक्षा एवं स्त्रातजीय अध्ययन विभाग, का.सु. साकेत पी0जी0 कालेज अयोध्या, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2021-08-10
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 52-55
Manuscript Number : SHISRRJ214428
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214428