Manuscript Number : SHISRRJ214433
भक्ति रस की अवधारणा (श्रीरूपगोस्वामी के अनुसार)
Authors(2) :-स्वाती द्विवेदी, संस्कृत विभागाध्यक्ष आचार्य रूपगोस्वामी ने भरतमुनि के रससूत्र के आलोक में भक्तिरस को प्रतिष्ठापित किया। अपने ग्रन्थ ‘भक्तिरसामृतसिन्धु’ में भक्तिरस को निरूपित करते हुए ‘सामग्री परिपोषेण रसरूपता’ अर्थात् विभावादि सामग्री के द्वारा परिपुष्ट कृष्ण विषयक रति (भगवद् भक्ति) को ही भक्तिरस माना है। यद्यपि भक्ति अथवा प्रीतिविषयक रति की अवधारणा प्राचीन काव्यशास्त्रियों के काव्यों में विद्यमान है तथापि भक्ति रस को काव्यगत रूप प्रदान कर उसे प्रतिष्ठित करने का श्रेय श्रीरूपगोस्वामी को ही है।
स्वाती द्विवेदी रस, भक्तिरस, काव्यशास्त्र, मधुर रस, चित्त, सिद्धान्त, श्रीरूपगोस्वामी। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 4 | July-August 2021 Article Preview
वरिष्ठ शोधच्छात्रा, संस्कृत विभाग, नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
संस्कृत विभागाध्यक्ष
संस्कृत विभागाध्यक्ष, नेहरू ग्रामभारती मानित विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2021-08-10
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 74-78
Manuscript Number : SHISRRJ214433
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214433