Manuscript Number : SHISRRJ21474
वर्तमान परिदृश्य में वाल्मीकीय रामायण में अन्तर्निहित पर्यावरणीय संचेतना की प्रासंगिकता
Authors(1) :-डाॅ0 सौम्या कृष्ण
पर्यावरण ही महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण का आधार है,जिसने समय-समय पर इस महाकाव्य को गति व विस्तार प्रदान किया है।इस सम्पूर्ण काव्य में प्रकृति जहाँ अभिव्यक्त भावों को अर्थवत्ता प्रदान कर प्रभावपूर्ण बनाती है, वहीं सृजन को बोधगम्य बनाने व भाव समप्रेषण में भी सहायक सिद्ध होती है। आदिकवि ने पर्यावरणीय कारकों नदी, पर्वत, फूल-पौधों, पशु-पक्षी एवं समस्त जड़-चेतन के चित्रण के माध्यम से मानव व प्रकृति के अन्योन्याश्रित सम्बन्ध का वर्णन कर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि मानव विकास और संरक्षण के निमित्त ‘तेन त्यक्तेन भुंजीथा‘ की नीति ही पर्यावरण संतुलन का आधार है।
डाॅ0 सौम्या कृष्ण
पर्यावरण, रामायण, महर्षि वाल्मीकि,संचेतना,प्रकृति, महाकाव्य, साहित्य,भाव। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 6 | November-December 2021 Article Preview
असिस्टेंट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, एस.एस. खन्ना महिला महाविद्यालय, प्रयागराज, भारत।
Date of Publication : 2021-11-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 105-109
Manuscript Number : SHISRRJ21474
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21474