Manuscript Number : SHISRRJ221210
स्वराज आन्दोलन में संस्कृत भाषा का अवदान
Authors(1) :-डा0 शालिनी साहनी स्वतंत्रता सग्रांम में अनेक संस्कृतज्ञों ने आत्माहुति दी तथा अपनी लेखनी से इस संग्राम को गति प्रदान की। “वयं राष्ट्रे जागृयामः पुरोहिताः“ अभ्युन्नति का मूलमंत्र भारतीयांे के रक्त में ही महती भावना को जगाने का कार्य संस्कृत के साहित्य ने उस काल में भी किया है।
स्वतंत्रता संग्राम में संस्कृत की सराहनीय भूमिका रही है। संस्कृत की अनेक पत्र-पत्रिकाओं , नाटकों, कृतियो एवं देषभक्ति गीतों ने स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलनांे को समय-समय पर ऊर्जा से भरकर जनमानस को स्वराज्य प्राप्ति की ओर अग्रसर करने में महती भूमिका निभायी है। संस्कृत कवियों, नाट्ककारों एवं संस्कृत पत्र- पत्रिकाओं के सम्पादकों ने पराधीन भारत माता को मुक्त कराने हेतु जन-जन को जागृति दी, राष्ट्रभक्ति एवं विद्रोह करने हेतु उन्हंे प्रेरित किया।
भारत में शासन करने के लिए अंग्रेजो ने संस्कृत भाषा और उसके साहित्य को नष्ट करने का षडयंत्र किया। लार्ड मैकाले नें अंग्रेजो को भारत की सरकारी भाषा तथा षिक्षा का माध्यम बनाया, संस्कृत की पारम्परिक षिक्षा को अवैध घोषित किया, जिससे पूरे देष में संस्कृत के गुरूकुल बंद होने लगे संस्कृत के विद्वान बहुत आहत हुए ।
अरविन्द भारतीयों को सनातन बताते हैं वे भारत माता के पुत्र है उन्हें न तो विपरीत विधि मार सकता है, न काल या यमराज ही उनका कुछ बिगाड़ सकते है। भारत माता अपनीे भारतीय सन्तति के बल, पराक्रम और पौरूष की प्रषंसा करती हुई भारतीयो को देष की रक्षा के लिये जगाती है प्रेरित करती है तथा उन्हें अग्नि के समान धधक उठने के लिये ललकारती है।
‘भवानी भारती’ ने भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम हेतु तैयार करने में महती भूमिका निभाई । इसे स्वतंत्रता संग्राम की गीता कहना सर्वाधिक उपयुक्त होगा। गीता ने जिस प्रकार अर्जुन को युद्ध के लिये सन्नद्ध किया उसी प्रकार ‘भवानी भारती’ ने भारतीयों को स्वतंत्रता संग्राम के लिये तैयार किया।
परतन्त्रता की कष्टकारी बेड़ियों में जकड़े हुए भारतीय जनमानस को स्वतंत्र कराने के लिए संस्कृत कवियों ने दृष्य श्रव्य अनेकानेक काव्यों के माध्यम से भारतीय जनचेतना को नवीन गति प्रदान की । भारत माता को स्वतंत्र कराने हेतु एक नवजागरण का कार्य संस्कृत कृतियों ने किया। काव्य गीतों, नाटको के माध्यम से विपुल साहित्यराषि की रचना हुई । जिसका प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से भारतीय जनचेतना पर व्यापक प्रभाव रहा है और आज भी इस प्रकार का ऐतिहासिक किंवा काल्पनिक लेखन हो रहा है जिसमें तत्कालिन घटना क्रम का वर्णन किया जा रहा है । जिससे आज का स्वातन्त्रयोत्तर भारत भी उस समय के भगत सिंह, आजाद, लक्ष्मीबाई गाँधी वीरसावरकर आदि स्वातन्त्रय वीरों के योगदान से परिचित हों।
डा0 शालिनी साहनी ‘वन्द्ेमातरम्’, कार्यम् वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्, असहयोग आन्दोलन, क्रान्तिकारी, आत्माहुति, “वयं राष्ट्रे जागृयामः पुरोहिताः“ अभ्युन्नति, “जननी जन्मभूमिष्च स्वर्गादपि गरीयसी“ Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 2 | March-April 2022 Article Preview
संस्कृत विभाग आर0एम0पी0पी0जी0 कालेज, सीतापुर, भारत।
Date of Publication : 2022-03-30
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Page(s) : 60-68
Manuscript Number : SHISRRJ221210
Publisher : Shauryam Research Institute
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