Manuscript Number : SHISRRJ22516
वैदिक साहित्य में वर्णित ईश्वर का स्वरूप
Authors(2) :-प्रो0 विनय कुमार विद्यालंकार, आरती चैधरी
प्रस्तुत शोधपत्र में वैदिक साहित्य एवं आर्ष ग्रन्थों में वर्णित ईश्वर के स्वरूप का विवेचनात्मक अध्ययन की चर्चा की गयी है। ईश्वर के अर्थ एवं स्वरुप का वर्णन वेद-उपनिषद्, दर्शन एवं श्रीमद्भगवद्गीता आदि आर्ष ग्रन्थों में विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। इन ग्रन्थों में जहाँ जीव (जीवात्मा) के लिए ‘पुरुष’ शब्द को प्रयुक्त किया गया है, तो वहीं ईश्वर को ‘परम पुरुष’ की संज्ञा से सुशोभित किया गया है। ईश्वर कोई जातिवाचक शब्द न होकर एक गुणवाचक शब्द है जिसमें ईश्वर में निहित गुणों का समावेश होता है। ईश्वर के गुणों के आधार पर उसका मनन-चिन्तन एवं स्मरण किया जाता है। इस जगत में जो कुछ चलायमान है, वह उस ईश्वर द्वारा छाया हुआ है। इस विशाल सृष्टि का स्वामी एवं समस्त ऐश्वर्यों से युक्त होने के कारण ईश्वर को भगवान कहा जाता है। श्रीमद्भगवद्गीता में स्पष्ट किया गया है कि इस संसार में जो-जो भी विभूतियुक्त अर्थात् ऐश्वर्ययुक्त, कान्तियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु है उन सभी में ईश्वर का तेज विद्यमान है। योगदर्शनकार महर्षि पतंजलि उपदेश करते हैं कि क्लेश, कर्म, विपाक और आशय- इन चारों से जो सम्बन्धित नहीं है, जो समस्त पुरूषों से उत्तम है, वह र्हश्वर है। उस ईश्वर का वाचक प्रणव है। इस प्रणव का जप करने से मनुष्य को चेतना का अधिगम अर्थात् आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है और वह अन्तरायों अर्थात् सांसारिक दुःख-क्लेशों से मुक्त होकर ईश्वरीय आनन्द में लीन होने लगता है।
प्रो0 विनय कुमार विद्यालंकार वेद, उपनिषद्, गीता, ईश्वर, भगवान, परमात्मा, परम पुरूष, पुरूष, प्रणव। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022 Article Preview
प्रोफेसर संस्कृत विभाग, डीन शिक्षा प्र0 संकाय, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार।
आरती चैधरी
शोधार्थी, योग विभाग, निर्वाण विश्वविद्यालय, जयपुर।
Date of Publication : 2022-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 41-44
Manuscript Number : SHISRRJ22516
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ22516