Manuscript Number : SHISRRJ225512
वेदार्थ ज्ञान में स्वरों का महत्व
Authors(1) :-नीरज आर्य मीमांसा में शबर स्वामी लिखते हैं- अथ त्रैस्वर्यादीनां कथं समाम्नानमिति उच्यते, अर्थावबोधनार्थं भविष्यति।1 आर्यसमाज के संस्थापक वेदभाष्यकार स्वामी दयानन्द जी अपनी ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में लिखते हैं - वेदार्थोपयोगितायाः संक्षेपतः स्वराणां व्यवस्था लिख्यते।2 इस प्रकार सभी प्राचीन अर्वाचीन आचार्यो ने सर्वत्र वैदिक लौकिक समस्त वाङ्मय में स्वरों का उपयोग नितान्त आवश्यक माना है।अन्य उदाहरण भी ऐसे देखे जा सकते हैं जिसमें स्वरों के अभाव में सत्यार्थ निर्णय करना कठिन हो जाता है- जैसे- भ्रातृव्यस्य वधाय’’, ‘‘न तस्य प्रतिमा अस्ति’’ इत्यादि। अतः कहा जा सकता है कि विना स्वरों की सहयता से वेदार्थज्ञान नहीं हो सकता सत्यार्थज्ञान के लिये स्वरों का विशेष महत्व है। वेद में तीन स्वरों की सहायता से मन्त्र पढ़े जाते हैं स्वरज्ञान के बिना बहुत्र सन्देह उत्पन्न होता है इसलिए प्राचीन आचार्यों का मत है कि मन्त्रजिज्ञासु को स्वरों का ज्ञान अवश्य होना चाहिए। कहा भी है - स्वरो वर्णोऽक्षरं मात्रा तत्प्रयोगार्थक्यमेव च। मन्त्रं जिज्ञासमानेन वेदितव्यं पदे पदे।।3
नीरज आर्य वेदार्थ, ज्ञान, स्वर, मीमांसा, शबर, स्वामी, सृष्टि, सत्यार्थज्ञान। .शबरभाष्य. 9/2/31 Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 5 | September-October 2022 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार, भारत।
2.ऋग्वेदादि. पृष्ठ-374
3.वर्णरत्नप्रदीपिका शिक्षा - 8
4.मनु. 2/71
5.मनु. 2/61
6.महाभाष्य पस्पशा.
7.मनु. 2/168
8.निरुक्त 1/1
9.मुण्डकोपनिषद् 1/1/4
0.पाणिनीय शिक्षा 41, 42
1.काशिका 1/2/29, 30, 31
2.वाक्यपदीयम्2/3/7
3.साहित्यदर्पण, परिच्छेद-3
4.स्वरानुक्रमणी 1/8
5.ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका परिशिष्ट
6.अष्टाध्यायी 6/1/197
7.अष्टाध्यायी 8/1/29
8.अष्टाध्यायी 6/1/180
9.अष्टाध्यायी 6/1/158
20.अष्टाध्यायी 6/1/163
21.महाभाष्य पस्पशा.
22.अष्टाध्यायी 6/1/217
23.अष्टाध्यायी 3/1/134
24.अष्टाध्यायी 6/1/163
25.अष्टाध्यायी 6/1/158
26.अष्टाध्यायी 8/4/65
27.अष्टाध्यायी 1/2/39
28.महाभाष्य पस्पशा.
Date of Publication : 2022-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 50-54
Manuscript Number : SHISRRJ225512
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ225512