Manuscript Number : SHISRRJ23620
अभिज्ञानशाकुन्तल में नैतिक मूल्य एक विमर्श
Authors(2) :-डॉ. देवनारायण पाठक, विजय कुमार पटेल
प्राचीन भारतीय महापुरूषों ने जिन नैतिक मूल्यो की स्थापना की है वे जीवन के व्यक्तिगत हितों की ओर प्रेरित करते हुए सामाजिक हित को ध्यान में रखकर अन्तिम उद्देश्य मोक्ष को प्राप्त करना ही अनिवार्य बताया है। मनुष्यों के आचारों-व्यहारों का निर्धारण नैतिक मूल्यों के परिप्रेक्ष्य में समाज के एक बड़े समूह द्वारा अनुमोदित होता है। इसलिए मनुष्यों का आचरण उनकी स्वाभाविक विशिष्टताओं एवं सामाजिक वातावरण का परिणाम होता है। लेकिन जब मानव समाज के एक अंग के रूप में मानव समाज द्वारा निर्धारित मानदण्डों के अनुसार आचरण नहीं करता है तब सामाजिक या वैयक्तिक मूल्यों के प्रति असंवेदनशील हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप नैतिक मूल्यों एवं सामाजिक मूल्यों का महत्व कम हुआ है। अतः व्यक्तियों को सामाजिक मूल्यों मानदण्डों के अनुसार ही आचरण करना चाहिए। सामाजिक मूल्यों या वैयक्तिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील रवैया अपनाना चाहिए। जिससे नैतिक व आदर्श युक्त समाज की स्थापना हो सके।
डॉ. देवनारायण पाठक नैतिक मूल्य, अभिज्ञानशाकुन्तल‚ कालिदास‚ जीवन‚ सामाजिक‚ समूह। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023 Article Preview
शोधनिर्देशक, संस्कृत विभाग, नेहरू ग्रामभारती (मानित वि.वि.), प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
विजय कुमार पटेल
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, नेहरू ग्रामभारती (मानित वि.वि.), प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2023-01-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 67-75
Manuscript Number : SHISRRJ23620
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ23620