Manuscript Number : SHISRRJ23621
हिन्दी आत्मकथा-साहित्य में महिला आत्मकथा का स्थान
Authors(1) :-ओम प्रकाष वत्स साहित्य कला है, समाज का दर्पण है, परंतु स्त्री साहित्य इसके साथ-साथ व्यक्ति की स्वतंत्रता और स्वायत्तता का साहित्य है, जहाँ लोकतांत्रिक मूल्यों की स्थापना होती है। अतः यह सही ही कहा गया है कि जहाँ दमन है, आतंक है, भय है, संताप है तथा शोषण है, वहीं उसके विरोध में स्त्री साहित्य सामने है। परिवर्तन एकदम नहीं होता। परिवर्तन की एक प्रक्रिया होती है। स्त्री की स्वतंत्रता का पहला चरण यही है कि वह दूसरों द्वारा दी गई देह की अवधारणा से मुक्त हो। अपनी देह के फैसले खुद ले। नारी की चेतना की पैरवी रचनात्मक जगत में तब तक अधूरी, बे मायने, सतही और अयथार्थवादी होगी जब तक देश की आधी आबादी की शेष पैंतालीस प्रतिशत उत्पीड़ित ग्रामीण स्त्रियों की बुनियादी समस्याएँं उकेरी नहीं जाएँगी। स्त्रीत्ववादी लेखन ने दो बातें तय कर दी है। पहली, कि वह एक स्वतंत्र साहित्यिक प्रकार्य है। यह भले ही हिन्दी में कोई आक्रामक आन्दोलन नहीं बना है, लेकिन इसने साहित्येतिहास के मर्दवादी पाठ को विखण्डित कर दिया है। दूसरी यह कि आलोचना के चालू औजार उसे पढ़ने में नाकामयाब हैं। इसलिए नारी जाति को चाहिए कि अपनी मुक्ति के सवाल को प्राथमिकता दें और सोचें कि हमारे जीवन का प्रमुख लक्ष्य क्या है? उसको पाने की हममें कितनी क्षमताएँं और संभावनाएँं हैं और उन्हें साकार करने के लिए हमें क्या करना है? अतः ऐसे में यह जरुरी है पूँजीवाद एवं पितृसत्ता से एक साथ लड़ा जाये। फिर तो पुरुष वर्ग महिलाओं के समर्थन में आयेगें।
ओम प्रकाष वत्स Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 2 | March-April 2023 Article Preview
स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, ति. माँ. भा. वि. वि., भागलपुर, भारत।
Date of Publication : 2023-03-15
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Page(s) : 01-08
Manuscript Number : SHISRRJ23621
Publisher : Shauryam Research Institute
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