Manuscript Number : SHISRRJ23622
श्रमजीवी महिलाएँ एवं पारिवारिक संगठन का एक समाजशास्त्रीय अध्ययन (रीवा जिले के विशेष संदर्भ में)
Authors(1) :-डाॅ. शाहेदा सिद्दीक़ी श्रमजीवी महिला शब्द का प्रयोग प्रायः नौकरी करने वाली के संदर्भ में किया जाता है अर्थात् वे महिलाएॅ जो घरों के बाहर नियमित रूप से आर्थिक या व्यवसायिक गतिविधियों में व्यस्त रहती है काम (श्रम करने वाले स्वयं श्रम करना ही नही, वरन दूसरे व्यक्तियों से काम लेना तथा उनके कार्य की निगरानी करना एवं निर्देशन आदि देना भी सम्मिलित है। आज के भौतिकवादी परिवेश में हर महिला का श्रमजीवी होना एक अनिवार्यता बन गयी है।1 घर की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये पति और पत्नी दोनों का ही कार्य करना आवश्यक हो गया है जिससे पत्नी की परम्परागत प्रस्थिति एवं भूमिका में परिवर्तन आये हैं घर के बाहर काम करने के कारण पत्नी को घर और बहार दोनों ही क्षेत्रों की भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता है। जिससे कभी-कभी ऐसी स्थिति भी आती है कि दोनों भूमिकाओं में तनाव उत्पन्न हो जाता है। इस प्रकार हम देखते है कि श्रम (पेशे) का परिवार के निर्माण पर परिवार की संरचना पर, परिवार की भूमिका पर और परिवार के विघटन पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। इसका कारण यह प्रतीत होता है कि जो महिलाओं में नौकरी करने की लहर आयी है उसका प्रभाव उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर तथा पारिवारिक संबंधों पर पड़ता है अब उसे एक तरह गृहणी, पत्नी, माॅ और दूसरी तरह जीविकोपार्जन दोनों की भूमिका निभानी पड़ती है। इस तरह दोहरी भूमिका को निभाने में उसकी शक्ति और समय खर्च दोनों होता है और इसका परिणाम यह होता है कि पारिवारिक संबंधों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। गृह कार्य के लिये समय का अभाव होता है। एक ही समय में घर की व्यवस्था करना और नौकरी पर जाने की तैयारी करना आसानी से सम्भव नहीं है। महिलाएॅ अपने पति को स्वामी न मान कर एक मित्र की भाॅति मानने की भावना इन महिलाओं में परिलक्षित होती है। इस कारण श्रमजीवी महिलाओं के दाम्पत्य जीवन के साथ ही परिवारों में तनाव की स्थिति प्रारंभ हो जाती है। पति श्रेष्ठ है तथा पत्नी उसके आधीन है, यह भावना आ जाती है जिसने इस भावना के आगें अपने को सम्पूर्ण समर्पण कर दिया वह परिवार में सभायोजित हो जाती है। यदि पति-पत्नी को एक दूसरे को समझना सुखमय दाम्पत्य जीवन का रहस्य है। पति पत्नी में आपसी समझ बूझ के अभाव में व्यक्तिगत मान्यताओं को प्रथम स्थान देते हैं। अतः इससे एक दूसरे को सहयोग देने कीबात ही नही उठती है घर और बाहर भी जिम्मेदारियों को एक साथ ढ़ोना श्रमजीवी महिलाओं के लिये असम्भव है इस अवधि में वह पति से सहयोग की अपेक्षा रखती है यदि पति अपने पत्नी के अपेक्षा पर खुश उतरती है वो महिला अपने दोहरी जिम्मेदारियों को कुशलतापूर्वक निर्वहन कर सकती है। यदि पति अपनी पत्नी का सहयोग नहीं करता है तो परिवार में तनाव सुनिश्चित है।
डाॅ. शाहेदा सिद्दीक़ी श्रमजीवी महिला, पारिवारिक संबंध, सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि, आत्मनिर्भरता। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 2 | March-April 2023 Article Preview
प्राध्यापक (समाजसाास्त्र) शास. ठाकुर रणमत सिंह (स्वशासी ) महाविद्यालय रीवा (म0प्र0), भारत।
Date of Publication : 2023-03-15
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Page(s) : 09-23
Manuscript Number : SHISRRJ23622
Publisher : Shauryam Research Institute
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