वैदिक साहित्य में पर्यावरण चेतना

Authors(1) :-डाॅ. विजय कुमार शर्मा

वैदिक काल में जिस प्रकार से मानव प्राकृतिक वातावरण को बिना क्षति पहुँचाए उसके साथ आनन्दमयी जीवन व्यतीत करता था। लेकिन आधुनिक युग में मनुष्य प्रकृति के तत्वों को नुकसान पहुँचाकर वातावरण को प्रदूषित कर रहा है, आने वाले समय में यह वातावरण मनुष्य के रहने के अनुकूल नहीं रह जाएगा। इसलिए हमें अभी से सजग होकर पर्यावरण के प्रति चेतना जागृत करना चाहिए।

Authors and Affiliations

डाॅ. विजय कुमार शर्मा
असिस्टेण्ट प्रोफेसर वेद, वेद विभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश।

वैदिक, साहित्य, पर्यावरण, मनुष्य,विज्ञान, संस्कृत, वेद।

  1. `ऋग्वेद: ७.१०३.८१।।
  2. ऋग्वेद: ७.१०३.९।।
  3. ऋग्वेद: १०.९०.१३।।
  4. ऋग्वेद: १०.१६८.४।।
  5. ऋग्वेद: १.८५.८।।
  6. ऋग्वेद: ३.१३.५।।
  7. अथर्ववेद: ३.३०.३ ।।
  8. अथर्ववेद: १.३४.२ ।।
  9. अथर्ववेद: ६.१३५.२ ।।
  10. अथर्ववेद: ६.१३५.३ ।।
  11. अथर्ववेद: १२.१.२६ ।।
  12. ऋग्वेद: १.१.४।।
  13. ऋग्वेद: १०.९०.२।।

Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 4 | July-August 2023
Date of Publication : 2023-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 10-15
Manuscript Number : SHISRRJ23643
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ. विजय कुमार शर्मा, "वैदिक साहित्य में पर्यावरण चेतना ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 6, Issue 4, pp.10-15, July-August.2023
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ23643

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