Manuscript Number : SHISRRJ236611
मघ्यकालीन भारत में उर्दू भाषा एवं साहित्य का विकास
Authors(1) :-डाॅ. मोहम्मद शकीम उर्दू भाषा एवं साहित्य का विकास दो विभिन्न संस्कृतियों के सहयोग का परिणाम है। इस कारण किसी एक संस्कृति को इसकी जननी नहीं कहा जा सकता है। इसके विकास में किसी एक विशेष वर्ग अथवा प्रान्त का श्रेय नहीं है, वरन समस्त भारतीयों को है जैसा कि सैय्यद सुलेमान नदवी का मत है कि ‘‘आज कल बाज़ फाज़िलों ने पंजाब में उर्दू और बाज़ अहले दकन ने दकन में उर्दू और बाज़ अज़ीज़ो ने गुजरात में उर्दू का नारा बुलंद किया है। लेकिन हकीकत यह मालूम होती है कि हर मुम्ताज सूबे की मुकामी बोली में मुसलमानों की आमद व रफ़्त और मेलजोल से जो तग़य्युरात हुये उन सबका नाम उर्दू रखा गया है।23 समस्त भारत वासियों ने चाहे वे हिन्दु हांे अथवा मुसलमान उर्दू भाषा के द्वारा अपने विचार अभिव्यक्त किये और स्वतन्त्रता आंदोलन में भी उर्दू अदब की महती भूमिका रही। इस तरह इसके साहित्य को उन्नति के शिखर पर पहुंचाया है। और आज भी बड़े पैमाने पर उर्दू भाषा बोली जाती है। उर्दू भाषा विभिन्न परिस्थितियों से होते हुए आज भी अपनी मिठास के लिए जानी जाती है। साहित्यकार रचना करते समय, फिल्म निर्माता फिल्म बनाते समय उर्दू के शब्दों का प्रयोग करते हैं और ऐसा करके उर्दू भाषा के विकास में अपना योगदान दे रहे हैं।
डाॅ. मोहम्मद शकीम मघ्यकालीन, भारत, उदूर्, भाषा, साहित्य, मुसलमान, फिल्म, इतिहास। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023 Article Preview
पूर्व शोध छात्र, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2023-12-12
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 70-75
Manuscript Number : SHISRRJ236611
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ236611