Manuscript Number : SHISRRJ236625
नैषधीयचरितम् में राजधर्म
Authors(1) :-डॉ सुभाष चन्द्र मीणा संस्कृत महाकाव्य की एक वृहद् परम्परा हैं , विभिन्न व्यक्तित्व से आधारित होने के कारण इनमें देशकाल के अनुसार विभिन्नताएँ भी मिलती हैं । यही विभिन्नता भारतीय सांस्कृतिक परिवेश की देश - दर्शन कराती है। श्रीहर्ष द्वारा प्रणीत वाईस सर्गात्मक नैषधीयचरितम् महाकाव्य भी इसी परम्परा का सम्बाहक महाकाव्य है। इस महाकाव्य की गणना ' किरातार्जुनियम् और शिशुपालवधम् के साथ संस्कृत महाकाव्यों की वृहत्रयी में होती है। इन महाकाव्यों से कल्पना , रमणीयता , चमत्कार तथा शास्त्रीय मानदण्डों के परिपाक में नैषधीयचरितम् अग्रगण्य है । इसीलिए संस्कृत मनीषियों में यह उक्ति प्रसिद्ध है- ' उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः ' अर्थात् नैषध काव्य के उदित हो जाने पर कहाँ माघ और कहाँ भारवि ? नैषधीयचरितम् महाकाव्य का मूल स्रोत महाभारत के वनपर्व में वर्णित नलोपाख्यान है। जिसमें कवि ने अपने प्रतिभा के बल पर अनेक शास्त्रीय विषयों को कान्ताशैली में प्रतिपादित किया है । वैसे दुरुहता के लिए हस महाकाव्य पर आलोचकों द्वारा आक्षेप भी लगाया जाता है लेकिन अर्थों की विपुलता से सहृदय आनन्द विभोर भी हो जाता है । कवि अपने कविता के आलोक में अनेक शास्त्रीय परम्परा का बोध कराता है। जिसमें श्रीहर्ष बहुत सफल होते भी दिखाई देते हैं । उनके द्वारा संगीत, दर्शन, विज्ञान, ज्योतिष, व्याकरण, समाजशास्त्र एवं राजशास्त्र आदि विषयों का सहजरूप से' नैषधीयचरितम्' महाकाव्य में वर्णन किया गया है। यहवर्णन केवल विचित्रिता के दृष्टि से ही नहीं किया गया है बल्कि उनके महात्म्य का बोध भी कराया गया है।
डॉ सुभाष चन्द्र मीणा सम्बाहक, महात्म्य, राजधर्म, विपुलता, न्यायपूर्वक, विश्लेषण, देदीप्यमान, तेजोराशि, प्रसन्नचित, आध्यात्मिकता, परम्परागत, समायोजन, पारिभाषिक, अभूतपूर्व, वैयक्तिक, प्रभावशाली, आदिकाल, विनय युक्त। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023 Article Preview
सहायकाचार्य (व्याकरण विभाग) केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, जयपुर परिसर।
Date of Publication : 2023-12-21
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 151-157
Manuscript Number : SHISRRJ236625
Publisher : Shauryam Research Institute
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