प्राचीन भारतीय गणतन्त्र व्यवस्था में शासित राज्यों का स्वरूप एवं महत्व

Authors(1) :-डाॅ0 विजय कुमार

प्राचीन भारत में प्रारम्भिक वैदिक जन और कुल; रक्त सम्बन्ध के आधार पर संगठित थे। समूहों के सदस्यों की स्वतन्त्रता और स्थानीय स्वायत्तता बनी रही, यद्यपि उन्होंने किसी एक परिवार के मुखिया के प्रति निष्ठा स्वीकार कर ली। युद्ध और विजय के भावना के साथ ऐसे संगठनों के सुरचित उपविभाग अस्तिव में आये और वे वैदिक साहित्य में गण, व्रत, संघ, विशः आदि शब्दों से जाने जाते है। परिस्थितियों के बदलने से विशः का स्वरूप बदल गया और आनुवांशिक मुखियों के प्रति निष्ठा राजतन्त्री अनुशासन में विकसित हो गयी। वैदिक साहित्य के इन गणसंघों में एक केन्द्रीय सत्ता होती थी जिसके शासक जन्मना होते थे। इस कारण वंशावलियों का विशेष महत्व था चाहे वे काल्पनिक ही हों। प्राचीन समय में गणसंघों में शासक और शासित वर्ग थे जिसमें शासक कुछ ऐसे वंश थे जिनके पास शक्ति थी तथा शासित वर्ग में सामान्यतः श्रमिक होते थे, जिनका शासकों से कोई रक्त सम्बन्ध नहीं होता था। श्रमिकों में वे लोग थे जिन्हें किसी स्थान विशेष पर, शासक वंशों द्वारा हराकर वहीं बसा रहने दिया गया हो या दूसरे स्थानों से बन्दी बनाकर लाये गये हों अथवा मजदूरी के लिए बुलाए गये हों। प्राचीन भारत में राजतन्त्र अपने कई रूपों में में प्रचलित था। इनमें से कुछ में तो सर्वाेच्च सम्प्रभु राजा होते थे। राजतन्त्रों के साथ-साथ अनेक प्रकार के गणतन्त्रीय राज्य में प्राचीन काल से विद्यमान थे। अनेक प्रकार के राजतन्त्रीय व गणतन्त्रीय राज्यों की प्रकृति तथा प्रशासन में परस्पर भिन्नता थी। पाणिनि कृत महाभाष्य में संघ को गण के अर्थ में लिया गया है (संघो धौ गण प्रशंसयोः)। प्राचीन समय में संघ का बोध होता था और पाणिनि के समय तक धार्मिक संघ ने महत्व धारण न किया था। कात्यायन ने पाणिनी के सूत्र की व्याख्या करते हुए यह बताया है कि क्षत्रिय जाति एक राज्य और संघ राज्य दोनों प्रकार की हो सकती थी यहाँ संघ के तात्पर्य को जानना अत्यन्त महत्वपूर्ण है। संघ का अर्थ यहाँ केवल कुछ लोगों का योगमात्र नहीं है वरन् यह एक ऐसा योग है जिसमें व्यक्ति कुछ निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक साथ मिलते हैं। उद्देश्यों की विभिन्नता के आधार पर संघों को भी विभिन्न रूपों से विभाजित किया जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप प्राचीन भारतीय गणतन्त्र व्यवस्था में शासित राज्यों के स्वरूप एवं महत्व में भी भिन्नता रही।

Authors and Affiliations

डाॅ0 विजय कुमार
विभाग प्रभारी एवं असि0 प्रोफेसर-प्राचीन इतिहास विभाग, इ0 सि0 स्0 सं0 से0 राजकीय महाविद्यालय, पचवस, बस्ती।

मात्स्यन्याय, आयुधजीवी, राजशब्दोपजीविनः, संस्थागार, भांडागारिक, विशेष, ग्राम-भोजक।

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  18. पाणिनी, 1, 2.65, 4, 1.162-63; दीघ निकाय, 3, 74 में वृद्धों के आदार व सम्मान पर बल दिया गया है।
  19. पाणिनी, 4, 4.93
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  25. महावग्ग, 9, 3.1-2
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Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023
Date of Publication : 2023-11-11
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 12-17
Manuscript Number : SHISRRJ23664
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 विजय कुमार , "प्राचीन भारतीय गणतन्त्र व्यवस्था में शासित राज्यों का स्वरूप एवं महत्व", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 6, Issue 6, pp.12-17, November-December.2023
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ23664

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