उच्चारण दोष : संस्कृतभाषा के विशेष संदर्भ में

Authors(1) :-डॉ. रवि प्रभात

संस्कृतभाषा का उच्चारण प्रायः दोषयुक्त हो जाता है। दोषयुक्त उच्चारण के परिणामस्वरूप वक्ता के अभीष्ट अर्थ को श्रोता समझ नहीं पाता है तथा अर्थाभिव्यक्ति नहीं हो पाती है। अतः उच्चारणों में होने वाले दोष उसके कारण को जानकर तथा उन दोषों का परिहार कर वक्ता प्रत्येक वर्ण का शुद्ध.शुद्ध उच्चारण कर सकता है, जिससे उसको इहलोक ही नहीं परलोक में भी प्रतिष्ठित पद प्राप्त हो सकता है।

Authors and Affiliations

डॉ. रवि प्रभात
संस्कृत विभाग, महर्षि विश्वामित्र महाविद्यालय, बक्सर, बिहार।

दोष, संस्कृतभाषा, उच्चारण, श्रोता, अर्थाभिव्यक्ति, परलोक, इहलोक।

  1. (क)वाग्घि ब्रह्म। ऐ. ब्रा. 15 (ख)वाग्वै ब्रह्म। बृ. उ. 4.1.12
  2. शब्दब्रह्मणि निष्णातः परब्रह्माधिगच्छति। ब्र. वि. उ. 17
  3. एकः शब्दः सम्यक् ज्ञातः शास्त्रान्वितः सुप्रयुक्तः स्वर्गे लोके कामधुग् भवति। म. भा. प्र. 1.1.6
  4. दुष्टः शब्दः स्वरतो वर्णतो वा मिथ्या प्रयुक्तो न तमर्थमाह। स वाग्वज्रो यजमानं हिनस्ति यथेन्द्रशत्रुः स्वरतोऽपराधात्।। म. भा. प.
  5. शंकितं भीतमुद्घुष्टमव्यक्तमनुनासिकम्। काकस्वरं शिरसिगं तथा स्थानविवर्जितम्।। उपांशुदष्टं त्वरितं निरस्तं विलम्बितं गद्गदितं प्रगीतम्। निष्पीडितं ग्रस्तपदाक्षरं च वदेन्नदीनं न तु सानुनास्यम्।। पा. शि. 34.35
  6. तदायापायव्यथनानि दोषाः। ऋ. प्रा. 14.1
  7. आयो नामासतो वर्णस्योपजनः। ऋ. प्रा. उ. भा. 1
  8. अपायो नाम सतोऽपकर्षः। ऋ. प्रा. उ. भा. 1
  9. व्यथनं नाम सतोऽन्यथाश्रवणम्। ऋ. प्रा. उ. भा. 1
  10. संवृतः कलो ध्मात एणीकृतोऽम्बूकृतोर्धको ग्रस्तो निरस्तः प्रगीत उपगीतः, क्ष्विण्णो रोमश इति। अपर आह. ग्रस्तं निरस्तमविलम्बितं निर्हतमम्बूकृतं ध्यातमथो विकम्पितम्।
  11. सन्दष्टमेणीकृतमर्धकं द्रुतं विकीर्णमेताः स्वरदोषभावना।। म. भा. 1.1.22
  12. एकारादीनां संवृतत्वं दोषः। म. भा. प्र. 1.22
  13. स्थानान्तरनिष्पन्न काकलिकत्वेन प्रसिद्धः। वही
  14. ध्मातः श्वासभूयिष्ठतया ह्स्वोऽपि दीर्घ इव लक्ष्यते। वही
  15. एणीकृतोऽविशिष्टः किमयमोकार अयौकार इति यत्र सन्देहः। वही
  16. ओष्ठाभ्यामम्बूकृतमाह नद्धं दुष्टम्। ऋ. प्रा. 4
  17. अर्धको दीर्घोऽपि ह्स्व इव। म. भा. प्र. 1.22
  18. जिह्वामूलनिग्रहे ग्रस्तमेतत्। ऋ. प्रा. 8
  19. निरस्तं स्थानकरणापकर्षे। ऋ. प्रा. 2
  20. प्रगीतः सामवदुच्चारितः। म. भा. प्र. 1.22
  21. उपगीतः समीपवर्णान्तरगीत्यानुरक्तः। वही
  22. क्ष्विण्णः कम्पमान इव। वहीं
  23. रोमशो गम्भीरः। वहीं
  24. अवलम्बितो वर्णान्तरसम्भिन्नः। वहीं
  25. निर्हतो रूक्षः। वहीं
  26. संदष्टं तु व्रीडन आह हन्वोः। ऋ. प्रा. 6
  27. अनुनासिकानां संदष्टा। ऋ. प्रा. 13
  28. अयथामात्रवचनं स्वराणाम्। ऋ. प्रा. उ. भा. 10
  29. विहारसंहारयोर्व्यासपीडने। ऋ. प्रा. 3
  30. स्वरौ कुर्वन्त्योष्ठयनिभौ सरेफौ। ऋ. प्रा. 38
  31. अनन्ता हि दोषा अशक्ति प्रमादकृताः। म. भा. प्र. 1.22

Publication Details

Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023
Date of Publication : 2023-11-21
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 294-298
Manuscript Number : SHISRRJ236646
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. रवि प्रभात, "उच्चारण दोष : संस्कृतभाषा के विशेष संदर्भ में", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 6, Issue 6, pp.294-298, November-December.2023
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ236646

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