Manuscript Number : SHISRRJ23666
पुराणों में पर्यावरण संरक्षण की अवधारणा तथा वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उसकी प्रासंगिकता
Authors(2) :-डाॅ0 सिद्धार्थ सिंह, संतोष कुमार पाण्डेय प्रकृति तथा मानव समाज सभ्यता के आरम्भ से ही एक दूसरे से सम्बंधित रहे हैं। मानव सभ्यताएं तथा संस्कृतियां प्रकृति के संरक्षण में ही पुष्पित, पल्लवित तथा विकसित हुई हैं। प्रकृति ने मानव का पोषण व संवर्धन किया तथा इसके बदले में मनुष्य ने प्रकृति का संरक्षण व सम्मान किया।1 प्राचीन ग्रन्थो में पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रार्थना करते हुए कहा गया कि-
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिंद पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवाशिष्यतेः।।2
अर्थात् मानव को अपनी इच्छाओं को वश में रख कर प्रकृति से उतना ही ग्रहण करना चाहिए जिससे उसकी पूर्णता को क्षति न पहुँचे।
डाॅ0 सिद्धार्थ सिंह पर्यावण, अग्नि, जल, ऋतुएँ, पर्वत, वनस्पतियाँ, वृक्ष, जीव जन्तु, ग्रह-नक्षत्र Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023 Article Preview
असि0 प्रोफेसर, प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर (उ0प्र0), सम्बद्धः वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उ0प्र0)
संतोष कुमार पाण्डेय
शोध छात्र, प्राचीन इतिहास, पुरातत्व एवं संस्कृति विभाग, तिलकधारी स्नातकोत्तर महाविद्यालय, जौनपुर (उ0प्र0), सम्बद्धः वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उ0प्र0)
Date of Publication : 2023-11-11
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 28-33
Manuscript Number : SHISRRJ23666
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ23666