Manuscript Number : SHISRRJ23667
वनों में लगनेवाली आगः कारण, प्रभाव एवं निदान
Authors(2) :-राजेश कुमार मिश्रा, रेखा अग्रवाल प्रकृति तथा मानव समाज सभ्यता के आरम्भ से ही एक दूसरे से सम्बंधित रहे हैं। मानव सभ्यताएं तथा संस्कृतियां प्रकृति के संरक्षण में ही पुष्पित, पल्लवित तथा विकसित हुई हैं। प्रकृति ने मानव का पोषण व संवर्धन किया तथा इसके बदले में मनुष्य ने प्रकृति का संरक्षण व सम्मान किया।1 प्राचीन ग्रन्थो में पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए प्रार्थना करते हुए कहा गया कि-
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिंद पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवाशिष्यतेः।।2
अर्थात् मानव को अपनी इच्छाओं को वश में रख कर प्रकृति से उतना ही ग्रहण करना चाहिए जिससे उसकी पूर्णता को क्षति न पहुँचे।
राजेश कुमार मिश्रा पर्यावण, अग्नि, जल, ऋतुएँ, पर्वत, वनस्पतियाँ, वृक्ष, जीव जन्तु, ग्रह-नक्षत्र Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023 Article Preview
उष्णकटिबंधीय वन अनुसंधान संस्थान, डाक घर आर. एफ. आर. सी., मंडला रोड, जबलपुर – 482 021 (म. प्र.), भारत
रेखा अग्रवाल
शासक़िय आदर्श विज्ञान महाविद्यालय, जबलपुर – 482 001 (म. प्र.), भारत
Date of Publication : 2023-11-11
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 34-49
Manuscript Number : SHISRRJ23667
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ23667