प्राचीन भारतीय श्रेणी संगठन का स्वरूप एवं दायित्व

Authors(1) :-डाॅ0 विजय कुमार

श्रेणी संगठन प्राचीन भारतीय व्यापारी संगठन थे, जो अपनी परम्पराएं विधि आदि के लिए स्वतंत्र थे। इनको वैधानिक अधिकार भी प्राप्त था इसीलिए कौटिल्य ने अक्षयपराध्यक्ष को श्रेणियों के नियमों और परम्पराओं को पुस्तकस्थ करने का आदेश दिया था। इनकी अपनी सेना होती थी जिसे श्रेणी बल कहते थे। संगठन से प्राप्त आय सभी सदस्यों में बाँटी जाती थी। श्रेणी प्रधान भी अपराध के लिए दण्डित होता था। ये किसी भी कार्य के लिए स्वतंत्र थे। राज्य इनके कार्यों का निरीक्षण करता था। हिसाब के लिए अध्यक्ष नियुक्ति था जो कार्य और आय-व्यय का हिसाब रखता था। श्रेणियों के पास धन जमा करने तथा आवश्यकता पर निकालने का कार्य उनके बैंकिंग स्वरूप का बोधक है। आर्थिक संकट में राज्य श्रेणियों से मुद्राएं तथा स्वर्ण सिक्के भी उधार लेता था। इनसे राज्य कर लेता था जिससे पर्याप्त आय होती थी। कुछ लोग इनके पास अक्षयनिधि जमा करते थे, जिसके ब्याज से ये जमाकर्ता का इच्छित कार्य करे रहते थे। इसके सदस्य तथा जनता अपनी अधिक बचत इन्हीं के पास जमा करती थी। ये इस पर उनको प्रोत्साहन देने के लिए सूद देती थी तथा जमा धन को सूद कमाने एवं व्यापार की वृद्धि के लिए दूसरे इच्छुक व्यवसायियों को दे देती थी जिस पर उनसे कर लेती थी। गौतम धर्मसूत्र से ज्ञात होता है कि कृषकों, व्यापारियों, चरवाहों, सूद पर धन देने वालों तथा कारीगरों को अपनी-अपनी श्रेणी के सदस्यों के लिए नियम बनाने का अधिकार था। श्रेणियाॅं जनकल्याणकारी कार्य करती थीं यथा- निर्धन व्यक्तियों को सहायता, जन्म, विवाह, अन्त्येष्टि आदि में, भवनों के निर्माण में तथा जीर्णाेद्वार में भी यह हाथ बटाती थी। श्रेणी एक प्रकार के व्यावसाय करने वालों का संघ होती था। ये अपने परिवार के लड़कों के प्रशिक्षण की व्यवस्था स्वयं करते थे। बड़े व्यावसायियों के यहाँ श्रेणियाँ कार्य सीखने के लिए इन बालकों को भेजती थी। कौटिल्य के मतानुसार राजा को श्रेणी धर्म का आदर करना चाहिए। विष्णु ने भी कहा है कि राजा संघों में प्रचलित रीति-रिवाजों का पालन करवाये। आवश्यकता पड़ने पर राजा श्रेणियों द्वारा रखे गये योद्धाओं (श्रेणी बल) का भी उपयोग करता था। श्रेणियों से राज्य प्रशासन को सुचारू रूप से चलाने में पूर्ण सहयोग की अपेक्षा की जाती थी तथा जो श्रेणी सदस्य श्रेणी-धर्म का पालन नहीं करता था राजा उसे दण्ड देता था। प्राचीन भारत में श्रेणीयों का महत्व एवं दायित्व काफी व्यापक था।

Authors and Affiliations

डाॅ0 विजय कुमार
विभाग प्रभारी एवं असि0 प्रोफेसर - प्राचीन इतिहास विभाग, इ0 सि0 स्0 सं0 से0 राजकीय महाविद्यालय, पचवस, बस्ती।

श्रेणी बल, सेट्ठि, अनुश्रेष्ठि, चुल्ल श्रेष्ठि, सेठिठ्त्थान, रूपदर्शक, श्रेणी-बैंक।

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Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024
Date of Publication : 2024-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 22-27
Manuscript Number : SHISRRJ24712
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 विजय कुमार, "प्राचीन भारतीय श्रेणी संगठन का स्वरूप एवं दायित्व ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 7, Issue 1, pp.22-27, January-February.2024
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ24712

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