शास्त्र-रचना के सिद्धांत और 'समयसार'

Authors(1) :-प्रो. सुदीप कुमार जैन

प्रायः धार्मिक और आध्यात्मिक ग्रन्थों को मात्र वैचारिक-अभिव्यक्ति मानकर उनके हर कथन को स्वतंत्र मान लिया जाता है और उनमें परस्पर सम्बद्धता एवं प्रबन्धन-गत सुनियोजितता की अपेक्षा तक नहीं की जाती है। इस पूर्वाग्रही-अवधारणा का सर्वाधिक बड़ा-प्रभाव यह होता है कि उनके प्रतिपादनों को उस कथन तक सीमित करके ही उसकी महनीयता का मूल्यांकन किया जाता है; किन्तु एक ग्रन्थ के रूप में उसके समस्त-कथनों की परस्पर-अनुस्यूति एवं उसका साहित्यशास्त्रीय-ग्रन्थों की भाँति प्रबन्धन-गत नियमों के आधार पर मूल्यांकन तक करने का प्रयास नहीं किया जाता है। इसकारण इन ग्रन्थों की साहित्यिकता के विषय में गम्भीरता से विचार तक नहीं किया जाता है। इन ग्रन्थों के बारे में इस मिथ को तोड़ने एवं प्राच्य-भारतीय-मनीषा के द्वारा प्रणीत धार्मिक एवं आध्यात्मिक ग्रन्थों के निर्माण-नियमों की विरासत का परिचय देने की दृष्टि से यह शोध-आलेख निर्मित है। इससे हम आज से 2000 वर्षों से भी प्राचीन भारतीय आगमिक-वाङ्मय के महान्-प्रणेता आचार्य कुन्दकुन्द के वाङ्मय की शास्त्रीयता को परखने की दृष्टि विकसित कर सकेंगे और उनके ग्रन्थों के प्रबन्धन-कौशल की सुनियोजितता के अभिज्ञ हो सकेंगे।

Authors and Affiliations

प्रो. सुदीप कुमार जैन
आचार्य, एवं विभागाध्यक्ष, प्राकृतभाषा-विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय) नई दिल्ली-110016

शास्त्र-रचना, समयसार, आध्यात्मिक, आचार्य कुन्दकुन्द, प्रबन्धन-कौशल, मूल्यांकन।

  1. 'समयसार', गाथासूत्र क्र. 35,74-78,93,101, 128,151,169,195-198,207-216,218,224-227, 247,250,253,280,316-320 इत्यादि।
  2. 'समयसार', गाथासूत्र क्र. 7,11,12,27-29,46-48, 56,58-60,83-85,272,276-277,414 इत्यादि।
  3. 'समयसार', गाथासूत्र क्र. 19-22,28,39-43, 69,94, 102,129,152-153,219 इत्यादि।
  4. 'समयसार', गाथासूत्र क्र. 38,181-185,293-295,390-412 इत्यादि।
  5. 'समयसार', गाथासूत्र क्र. 16,18,408-412 इत्यादि।
  6. 'समयसार', गाथासूत्र क्र. 15,31-33,73,184, 189,204,218,236,272,305,318-320 इत्यादि।
  7. 'समयसार', गाथा-सूत्र क्र. 4,8,11,34,57,62,93, 74,86,99,103,104,112,127,145,147,150,154, 168, 170,208,335 आदि।
  8. 'समयसार', गाथा-सूत्र क्र.1 7-19,26-27,30,35, 116-120,1 37-138,210-213,257-259,325-331, 345-346,371-372,390-402 इत्यादि।

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024
Date of Publication : 2024-02-15
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 155-159
Manuscript Number : SHISRRJ247121
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

प्रो. सुदीप कुमार जैन, "शास्त्र-रचना के सिद्धांत और 'समयसार' ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 7, Issue 1, pp.155-159, January-February.2024
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ247121

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