Manuscript Number : SHISRRJ24713
मत्स्य पुराण में वर्णित न्याय तथा दण्ड व्यवस्था
Authors(2) :-डॉ सिद्धार्थ सिंह, सन्तोष कुमार पाण्डेय मत्स्य पुराण हिन्दू धर्म के पवित्र अष्टादश पुराणों में सर्वाधिक प्राचीन एवं महत्वपूर्ण पुराण है। इसे केवल धार्मिक ग्रन्थ कहकर इसके अन्य पक्ष को उपेक्षित करना किसी भी दृष्टि से तर्कसंगत नहीं है। यह भारतीय राजनीतिक चिन्तन की या बहुमूल्य निधि है। यह राजनीतिक जीवन के अन्तर्गत सर्वसुलभ न्याय तथा दण्ड व्यवस्था का सुन्दर चित्र हमारे समक्ष प्रस्तुत करता है। राजा का प्रमुख कार्य धर्म के अनुसार शासन का संचालन करना, प्रजा की रक्षा करना, वर्णाश्रम धर्म के अनुसार न्याय करना तथा दोषियों को दण्डित करना था। राजा के लिए अपने राज्य में सशक्त दण्डनीति का पालन आवश्यक था क्योंकि इसकी अनुपस्थिति में समाज में मत्स्य न्याय फैल जाएगा अर्थात् जिस प्रकार बड़ी मछली छोटी को खा जाती है ठीक उसी प्रकार शक्तिशाली लोग निर्बल व्यक्तियों का शोषण करना प्रारम्भ कर देते हैं। इस समय अपराध की प्रवृत्ति के आधार पर अर्थदण्ड (जुर्माना) शारीरिक दण्ड / मृत्युदण्ड अथवा दोनों ही प्रकार के दण्ड दिए जाते थे। सामान्य प्रवृत्ति वाले अपराध में अर्थदण्ड जबकि गम्भीर प्रवृत्ति वाले अपराध में मृत्युदण्ड की सजा दीजातीथी। मत्स्य पुराण, न्याय, कृष्णल, पण, काषार्पण, उत्तम साहस दण्ड, अर्थदण्ड, शारीरिक दण्ड या मृत्युदण्ड, ब्राह्मण, क्षत्रिय , वैश्य तथा शूद्र Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 1 | January-February 2024 Article Preview
Date of Publication : 2024-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 28-36
Manuscript Number : SHISRRJ24713
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ24713