महर्षि दयानंद सरस्वती के वैदिक शैक्षिक विचार: एक वैचारिक पुनरावलोकन एवं समकालीन सन्दर्भों में प्रासंगिकता

Authors(1) :-सुषमा रानी

महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा प्रतिपादित वैदिक शिक्षा प्रणाली न केवल व्यक्ति के बौद्धिक विकास का माध्यम थी, बल्कि यह आत्म-उत्थान, सामाजिक सुधार तथा आध्यात्मिक मुक्ति का मार्ग भी थी। उन्होंने शिक्षा को केवल औपचारिक विद्यालयी प्रणाली तक सीमित नहीं रखा, बल्कि जन्म से मृत्यु तक चलने वाली एक निरंतर प्रक्रिया के रूप में प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, वैदिक ज्ञान का उद्देश्य व्यक्ति को विवेकशील, धार्मिक, संयमी, और सत्य के मार्ग पर चलने वाला बनाना है। उन्होंने अर्यपाठ पद्धति के पुनरुत्थान की आवश्यकता पर बल दिया और पौराणिक अंधविश्वासपूर्ण शिक्षाओं को समाज की अधोगति का कारण बताया। महर्षि दयानंद का यह विश्वास था कि वैदिक शिक्षा ही भारत के नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान का एकमात्र आधार है। यह शोधपत्र उनके वैदिक शैक्षिक दृष्टिकोण का विश्लेषण करता है तथा यह समझने का प्रयास करता है कि उनके विचार आज के शिक्षा तंत्र और सामाजिक सुधार में किस प्रकार प्रासंगिक हो सकते हैं।

Authors and Affiliations

सुषमा रानी
एसोसिएट प्रोफेसर, शिक्षक शिक्षा विभाग, एन.एम.एस.एन.दास (पी.जी.) कॉलेज, बदायूं, भारत।

महर्षि दयानंद सरस्वती, वैदिक शिक्षा, आर्यपाठ पद्धति, सत्यार्थ प्रकाश, धार्मिक मुक्ति, जीवनपर्यंत शिक्षा, सामाजिक सुधार, वैचारिक पुनरुत्थान, वेदों की व्याख्या, भारतीय शिक्षा प्रणाली।

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Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 4 | July-August 2024
Date of Publication : 2024-08-16
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 102-118
Manuscript Number : SHISRRJ247152
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

सुषमा रानी , "महर्षि दयानंद सरस्वती के वैदिक शैक्षिक विचार: एक वैचारिक पुनरावलोकन एवं समकालीन सन्दर्भों में प्रासंगिकता", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 7, Issue 4, pp.102-118, July-August.2024
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ247152

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