अधिगम व्यवहार के अन्तर्निहित तत्त्वों का विश्लेषण

Authors(2) :-डा. नितिन कुमार जैन, दुर्गेश कुमार त्रिपाठी

भारतीय ज्ञान परम्परा या भारतीय विद्या, जो संस्कृत, तमिल, प्राकृत, पालि आदि भारतीय भाषाओं में निहित है, एक विस्तृत और गहन ज्ञान व्यवस्था है जो हजारों वर्षों से विकसित हो रही है। भारतीय ज्ञान परम्पराएं भारतीय ज्ञान-विज्ञान की संवाहक परम्पराएं हैं। भारतीय चिंतन परंपरा में अधिगम के तीन अर्थ प्रसिद्ध है – ज्ञान, प्राप्ति और स्वीकृति। अधिगम व्यवहार का सरल अभिप्राय यह है कि मनुष्य के सकारात्मक व्यवहार या अनुकूल व्यवहार को अधिगम व्यवहार कहा जाता है। अधिगम व्यवहार का सरल अभिप्राय है अधिगम के लिए सहायक व्यवहार अर्थात् वह व्यवहार जो अधिगमोन्मुख हो। अनुकूल व्यवहारों में ज्ञान प्रक्रिया के अनुकूल व्यवहार – सकारात्मक अभिवृत्ति, जिज्ञासा या प्रश्नवृत्ति, अभिप्रेरणा, ज्ञानसन्तुष्टि, प्रमाणसिद्धता, इन्द्रियव्यवहार आदि तथा प्राप्ति के अनुकूल व्यवहारों में सकारात्मकता, उद्देश्यस्पष्टता, साधनसम्पन्नता, सामर्थ्य-असामर्थ्यबोध, नीतिनियमबद्धता आदि की चर्चा इस आलेख की गयी है।

Authors and Affiliations

डा. नितिन कुमार जैन
सहायकाचार्य, शिक्षाशास्त्र, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली
दुर्गेश कुमार त्रिपाठी
शोधच्छात्र, शिक्षाशास्त्र, केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल परिसर, भोपाल

अधिगम, अधिगम व्यवहार।

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Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 3 | May-June 2024
Date of Publication : 2024-05-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 85-89
Manuscript Number : SHISRRJ2472131
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डा. नितिन कुमार जैन, दुर्गेश कुमार त्रिपाठी , "अधिगम व्यवहार के अन्तर्निहित तत्त्वों का विश्लेषण ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 7, Issue 3, pp.85-89, May-June.2024
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2472131

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