Manuscript Number : SHISRRJ24764
महाकवि बाणभट्ट विरचित कादम्बरी में पर्यावरणीय अवधारणा
Authors(1) :-अमित त्रिपाठी जब हम अपने चारों ओर दृष्टिपात करते हैं तो स्वयं को एक अदृश्य शक्ति से आच्छादित पाते हैं जिसको हम पर्यावरण के रूप में जानते है। मानव जाति का आधार यही वातावरण है जिसके बिना मानव के जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है। लेकिन मानव की स्वार्थ लोलुपता और अन्धाधुन्ध प्राकृतिक दोहन के कारण वर्तमान समय पर्यावरण में असन्तुलता उत्पन्न हो गयी जो पर्यावरण प्रदूषण रूपी दानव के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित हो गया है। अब आवश्यकता है पुनः सम्पूर्ण विश्व को प्राचीन वैदिक परम्पराओं की ओर लौटने की जिससे हमारे मन में प्रकृति के प्रति आदर और प्रेम बढ़ सके हमारे लिए वृक्ष पुनः हमारे बन्धु-बान्धव के रूप में प्रतीत हो सकें। मानव के अन्दर प्रकृति प्रेम को जाग्रत करने के लिए विभिन्न संस्कृत कथाओं की रचना हुई जिसमें महाकवि बाणभट्ट विरचित कादम्बरी-कथा प्रमुख है। जिसमें प्रकृति अध्येता के सम्मुख नर्तकी की भाँति अठखेलियाँ करती हुई से दिखती है और पर्यावरण के नैसर्गिक सौन्दर्य को अभिव्यक्त करती है तथा पर्यावरण संरक्षण उपदेश करती हुई-सी प्रतीत होती है।
अमित त्रिपाठी पर्यावरण, कादम्बरी, महाकवि बाणभट्ट, प्रदूषण, बन्धु-बान्धव, मानव स्वार्थ, लोलुपता, अन्धाधुन्ध, प्राकृतिक दोहन।
Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 6 | November-December 2024 Article Preview
शोधच्छात्र, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झांसी, उ0प्र0
Date of Publication : 2024-11-25
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 24-26
Manuscript Number : SHISRRJ24764
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ24764